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{{ आदर्श विद्यार्थी पर निबंध }} Essay on adarsh vidyarthi in hindi | Adarsh Vidyarthi par Nibandh In Hindi | Ideal Student Essay In Hindi

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{{ स्वदेश प्रेम पर निबंध }} Swadesh Prem Essay In Hindi | Swadesh Prem Par Nibandh in Hindi | Essay on love for your own country in Hindi

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{{ राष्ट्रीय खेल हॉकी पर निबंध }} National game hockey essay in Hindi | Hockey par Nibandh | Essay on Hockey in Hindi

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राष्ट्रीय खेल हॉकी पर निबंध  | National game hockey essay in Hindi | Hockey par Nibandh | Essay on Hockey in Hindi


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Short Essay : - National game hockey |   राष्ट्रीय खेल हॉकी | Rashtriya khel hockey 


देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी का विकास करने के लिए वर्ष 1925 में अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना की गई थी | बात करें ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन की, तो ओलंपिक में अब तक भारत को कुल 18 पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही हासिल किए हैं | हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 कांस्य पदक शामिल हैं | 1928 से लेकर 1956 तक लगातार छ: बार भारत ने ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई | इसके अतिरिक्त 1964 एंव 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया |

हॉकी के विश्वकप में भारत का प्रदर्शन ओलंपिक जैसा नहीं रहा है | द्वितीय हॉकी विश्वकप, 1973 में भारत उपविजेता रहा था एंव केवल एक बार 1975 में यह विजेता रहा है | इसके बाद से अब तक हॉकी विश्वकप में भारत की स्थिति संतोषजनक नहीं रही है | वर्ष 2010 में हॉकी विश्वकप का आयोजन भारत में हुआ था, इसमें भी भारत संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर सका | एशियन गेम्स में 1966 एंव 1998 में अर्थात कुल दो बार भारत ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया है तथा अब तक कुल 9 बार इसने इसमें रजत पदक प्राप्त करने में कामयाबी पाई है | इसके अतिरिक्त दो बार कांस्य पदक भी भारतीय हॉकी टीम अपने नाम कर चुकी है |

राष्ट्रीय खेल होने के बाद भी 70 के दशक के बाद से भारतीय हॉकी में लगातार गिरावट देखने को मिली है | यह कटु सत्य है कि जिस भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कभी तूती बोलती थी, वही टीम वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालिफाई भी नहीं कर पाई | हालांकि राष्ट्रमंडल खेल 2010 में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा था | खैर, पिछले कुछ वर्षों में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान कायम करने में सफलता पाई है, किन्तु पुरुषों की हॉकी टीम के प्रदर्शन में निरंतर गिरावट आना चिंता का विषय है | विशेषज्ञों का कहना है कि 1970 के दशक के मध्य से हॉकी के मैदान में एस्ट्रो टर्फ अर्थात कृत्रिम घास के प्रयोग के बाद से भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन में गिरावट आने लगी, क्योंकि भारत में ऐसे मैदानों का अभाव था | अब भारत में ऐसे हॉकी के मैदानों के विकास पर जोर दिया जा रहा है |  आशा है आने वाले वर्षों में भारत हॉकी में अपने पुराने गौरव को प्राप्त करने में सफल रहेगा |

"राष्ट्रीय खेल हॉकी पर निबंध" "National game hockey essay in Hindi" "Hockey par Nibandh" "Essay on Hockey in Hindi"

Medium Essay : - National game hockey |   राष्ट्रीय खेल हॉकी | Rashtriya khel hockey in hindi



हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है । हॉकी एक लोकप्रिय खेल है, जिस प्रकार यह खेल भारतवर्ष में कई वर्षों से खेला जा रहा है उससे यह प्रतीत होता है कि यह खेल भारतीय है । वास्तविकता यह है, कि भारतवर्ष में हॉकी को अंग्रेजों ने शुरू किया था । भारतीय इस खेल में दक्ष हो गए और अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में विजय प्राप्त करके नाम कमाया ।

बहुत पहले ईरान के लोग बल्लों से एक खेल खेला करते थे । यह खेल हॉकी से मिलता था । किन्तु वह खेल हॉकी की तरह बढ़िया नहीं था । ईरानियों से यह खेल यूनानियों ने सीखा और उसे रोम तक पहुंचाया। वर्ष 1921 में एथेन्स में हुई खोज के आधार पर इस बात की पुष्टि हुई, कि यूरोप – यह खेल पूर्व से ही पहुंचा । किन्तु आधुनिक हॉकी से मिलता-जुलता खेल पहली बार इंग्लैण्ड में ही खेला गया उस समय यदि 14 मीटर से ज्यादा की दूरी से गोल किया जाता तो उसे गोल नहीं माना जाता था ।

किन्तु तब तक गोल वृत्त नहीं बनाया जाता था । जिस प्रकार की हाँकी अब खेली जा रही है हॉकी का जन्म 1886 में तब हुआ जब हाँकी एसोसियेशन की स्थापना हुई । इसके बाद इंग्लैण्ड और आयरलैंड के मध्य वर्ष 1895 में पहला अन्तर्राष्ट्रीय मैच खेला गया ।

हॉकी का खेल दो टीमों के मध्य खुले मैदान में खेला जाता है । प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं । प्रत्येक टीम गोल करने का प्रयत्न करती है । हॉकी का मैदान 92 मीटर लम्बा और 52 से 56 मीटर चौड़ा होता है । हॉकी के खेल में गेंद, हाँकी, चुस्त ड्रैस, हल्के मजबूत और सही नाप के केनवास के जूते, झंडियां, गोल के खंभे तथा तख्ते तथा गोल की जालियां आदि चीजें काम आती हैं । हॉकी का खिलाड़ी स्वस्थ तथा मजबूत होना चाहिए ।

उसमें इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह दो-तीन घंटे सक्रियता तथा एकाग्रता से खेल सके और तेजी से दौड़ सके । हॉकी के खिलाड़ी में फुर्तीलापन, तत्काल निर्णय लेने की शक्ति तथा सहिष्णुता होनी चाहिए । हाँकी के खेल में सहयोग तथा सद्‌भावना जरूरी है, अकेला खिलाड़ी कुछ नहीं कर सकता । कुछ खिलाड़ी ड्रिबलिंग से दूसरे दर्शकों को मुग्ध कर देते हैं किन्त, यह अच्छा खेल नहीं है । वर्ष 1908 में हॉकी को ओलम्पिक खेलों में शामिल कर लिया गया ।

उस वर्ष जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हुई उसमें केवल इंग्लैण्ड, स्कॉटलैड, वैल्स, आयरलैंड, जर्मनी तथा फ्रांस ने भाग लिया । पहले हॉकी के खेल में भरपूर मनोरंजन प्रदान करने की ओर ध्यान दिया जाता था । अब यह खेल विजय-पराजय को ध्यान में रखकर खेला जाता है ।

भारत ने ओलम्पिक हॉकी में सन् 1928 में पहली बार भाग लिया । भारत में अंतिम स्पर्धा में हालैंड को 3० गोल से पराजित करके हॉकी जगत में अपने नाम का सिक्का जमा दिया । चार वर्ष बाद लॉस एंजिल्स में भारत ने फिर से स्वर्ण पदक प्राप्त किया ।

भारतीय खिलाड़ी ड्रिबलिंग में कुशल थे । 1936 की भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मेजर ध्यानचंद को जिन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता था और उन जैसा हॉकी का जादूगर विश्व में अभी तक नहीं हुआ है । देश में अभी हाल ही में उनका 100वां जन्मदिवस मनाया गया । भारतीय खिलाड़ियों का गेंद पर सदैव नियंत्रण रहता था और वे पास देने में भी कुशल थे । प्रत्येक खिलाड़ी प्रतिरक्षा तथा आक्रमण करना जानता था । भारतीय खिलाड़ियों में टीम की भावना थी । वे राष्ट्र के लिए खेलते थे ।

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Long Essay : - National game hockey |   राष्ट्रीय खेल हॉकी | Rashtriya khel hockey in hindi



भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी विश्व के लोकप्रिय खेलों में से एक है | इसकी शुरुआत कब हुई, यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता किन्तु ऐतिहासिक साक्ष्यों से सैकड़ों वर्ष पहले भी इस प्रकार का खेल होने के प्रमाण मिलते हैं | आधुनिक हॉकी खेलों का जन्मदाता इंग्लैंड को माना जाता है | भारत में भी आधुनिक हॉकी की शुरुआत का श्रेय अंग्रेजों को ही जाता है | हॉकी के अन्तर्राष्ट्रीय मैचों की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई थी | इसके बाद बीसवीं शताब्दी में 1924 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना हुई | विश्व के सबसे बड़े अन्तर्राष्ट्रीय खेल आयोजन ‘ओलंपिक’ के साथ-साथ ‘राष्ट्रमंडल खेल’ एवं ‘एशियाई खेलों’ में भी हॉकी को शामिल किया जाता है | 1974 ई. में पुरुषों के हॉकी विश्वकप की एंव 1974 ई. में महिलाओं के हॉकी विश्व कप की शुरुआत हुई | न्यूनतम निर्धारित नियत समय में परिणाम देने में सक्षम होने के कारण ही इस खेल ने मुझे सदैव आकर्षित किया है |

हॉकी मैदान में खेला जाने वाला खेल है | बर्फीले क्षेत्रों में बर्फ के मैदान पर खेली जाने वाली आइस हॉकी भारत में लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सकी है | दो दलों के बीच खेले जाने वाले खेल हॉकी में दोनों दलों के 11-11 खिलाड़ी भाग लेते हैं | आजकल हॉकी के मैदान में कृत्रिम घास का प्रयोग भी किया जाने लगा है | इस खेल में दोनों टीमें स्टिक की सहायता से रबड़ या कठोर प्लास्टिक की गेंद को विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने का प्रयास करती हैं | यदि विरोधी टीम के नेट में गेंद चली जाती है, तो उसे एक गोल कहा जाता है | जो टीम विपक्षी टीम के विरुद्ध अधिक गोल बनाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है | मैच में विभिन्न प्रकार के निर्णय में एवं खेल पर नियंत्रण के लिए मैच रेफरी को तैनात किया जाता है | मैच बराबर रहने की दशा में परिणाम निकालने के लिए व्यवस्था भी है |

राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात आते ही तत्काल मेजर ध्यानचंद का स्मरण हो जाता है, जिन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचंभित कर खेलों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया | हॉकी के मैदान पर जब वह खेलने उतरते थे, तो विरोधी टीम को हराने में देर नहीं लगती थी | उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे किसी भी कोण से गोल कर सकते थे | यही कारण है कि सेंटर फॉरवर्ड के रूप में उनकी तेजी और जबरदस्त फुर्ती को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा था | उन्होंने इस खेल को नवीन ऊंचाइयां दीं |

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था | वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पेड़ की डाली की स्टिक और कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे | 23 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार भाग ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य चुने गए थे | उनके प्रदर्शन के दम पर भारतीय हॉकी टीम ने 3 बार 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक, 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक एवं 1936 के बर्लिन ओलंपिक में, स्वर्ण पदक प्राप्त कर राष्ट्र को गौरवान्वित किया था | यह भारतीय हॉकी को उनका अविस्मरणीय योगदान है | ध्यानचंद की उपलब्धियों को देखते हुए ही उन्हें विभिन्न पुरस्कारों एंव सम्मानों से सम्मानित किया गया | 1956 ई. में 51 वर्ष की आयु में जब वे भारतीय सेना के मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए, तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें ‘पदमभूषण’ से अलंकृत किया | उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई | मेजर ध्यानचंद के अतिरिक्त धनराज पिल्लै, दिलीप टिर्की, अजितपाल सिंह, असलम शेर खान, परगट सिंह इत्यादि भारत के अन्य प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी रहे हैं |

देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी का विकास करने के लिए वर्ष 1925 में अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना की गई थी | बात करें ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन की, तो ओलंपिक में अब तक भारत को कुल 18 पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही हासिल किए हैं | हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 कांस्य पदक शामिल हैं | 1928 से लेकर 1956 तक लगातार छ: बार भारत ने ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई | इसके अतिरिक्त 1964 एंव 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया |

हॉकी के विश्वकप में भारत का प्रदर्शन ओलंपिक जैसा नहीं रहा है | द्वितीय हॉकी विश्वकप, 1973 में भारत उपविजेता रहा था एंव केवल एक बार 1975 में यह विजेता रहा है | इसके बाद से अब तक हॉकी विश्वकप में भारत की स्थिति संतोषजनक नहीं रही है | वर्ष 2010 में हॉकी विश्वकप का आयोजन भारत में हुआ था, इसमें भी भारत संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर सका | एशियन गेम्स में 1966 एंव 1998 में अर्थात कुल दो बार भारत ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया है तथा अब तक कुल 9 बार इसने इसमें रजत पदक प्राप्त करने में कामयाबी पाई है | इसके अतिरिक्त दो बार कांस्य पदक भी भारतीय हॉकी टीम अपने नाम कर चुकी है |

राष्ट्रीय खेल होने के बाद भी 70 के दशक के बाद से भारतीय हॉकी में लगातार गिरावट देखने को मिली है | यह कटु सत्य है कि जिस भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कभी तूती बोलती थी, वही टीम वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालिफाई भी नहीं कर पाई | हालांकि राष्ट्रमंडल खेल 2010 में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा था | खैर, पिछले कुछ वर्षों में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान कायम करने में सफलता पाई है, किन्तु पुरुषों की हॉकी टीम के प्रदर्शन में निरंतर गिरावट आना चिंता का विषय है | विशेषज्ञों का कहना है कि 1970 के दशक के मध्य से हॉकी के मैदान में एस्ट्रो टर्फ अर्थात कृत्रिम घास के प्रयोग के बाद से भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन में गिरावट आने लगी, क्योंकि भारत में ऐसे मैदानों का अभाव था | अब भारत में ऐसे हॉकी के मैदानों के विकास पर जोर दिया जा रहा है |  आशा है आने वाले वर्षों में भारत हॉकी में अपने पुराने गौरव को प्राप्त करने में सफल रहेगा |

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{{ मेरा प्रिय खेल क्रिकेट पर निबंध }} Essay On Mera Priya Khel Cricket In hindi | Mera Priya Khel Cricket Par Nibandh in Hindi

मेरा प्रिय खेल क्रिकेट पर निबंध | Essay on my favorite game cricket in hindi | Essay On Mera Priya Khel Cricket In hindi | Mera Priya Khel Cricket Par Nibandh in Hindi 


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My favourite game cricket | मेरा प्रिय खेल क्रिकेट



मेरा प्रिय खेल क्रिकेट पर निबंध | Essay on my favorite game cricket in hindi | Essay On Mera Priya Khel Cricket In hindi | Mera Priya Khel Cricket Par Nibandh in Hindi 


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Small Essay :  Mera Priya Khel Cricket | मेरा प्रिय खेल क्रिकेट | My favorite game cricket


Cricket | क्रिकेट 


वर्तमान समय का सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट है। बहुत सारे देशों में क्रिकेट लोकप्रिय खेल बन चुका है। सबसे पहले क्रिकेट की शुरुयात ब्रिटेन में हुई थी इसीलिए ब्रिटेन को क्रिकेट का जन्मदाता कहा जाता है। क्रिकेट भारत में सबसे लोकप्रिय खेल है। हालांकि भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है परन्तु भारत के लोग ज्यादातर क्रिकेट में दिलचस्पी लेते है।Cricket

क्रिकेट खेल की एक टीम में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। क्रिकेट मैच तीन प्रकार से खेला जाता है वनडे मैच , टेस्ट मैच और T 20 मैच।  क्रिकेट पिच 22 गज की होती है यहां गेंद फेंकी जाती है इसके दोनों तरफ विकेट गाड़ी होती हैं। ओवर छे गेंदों का होता है यानि के बॉलर को एक ओवर में छे गेंदे फेंकनी होती हैं। क्रिकेट का मैदान अंडाकार स्तिथि में होता है और इसमें हल्का –हल्का घास भी उगा होता है मैदान की अंतिम रेखा को बाउंड्री कहा जाता है खेलने से पहले दोनों टीमों के बीच सिक्के के साथ टॉस किया जाता है जिसमें तय होता है की कौन पहले बैटिंग या बोलिंग करेगा।

क्रिकेट इतिहास का पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ था यह मैच 15 मार्च 1877 को खेला गया था । हर चार वर्ष के बाद क्रिकेट वर्ल्ड कप होता है जिसमें सभी टीम भाग लेती हैं और भारतीय क्रिकेट टीम ने 1983 और 2011 का क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतकर अपनी श्रेष्ठा दिखाई थी ।


Medium Essay :  Mera Priya Khel Cricket | मेरा प्रिय खेल क्रिकेट | My favorite game cricket


आज क्रिकेट भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल है । क्रिकेट खेलने और देखने वालों की संख्या यहाँ सबसे अधिक है । यद्यपि क्रिकेट भारत का अपना खेल नहीं है । वास्तव में क्रिकेट इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की देन है । पहले भारत में हाँकी, बालीबाल, फुटबॉल अधिक लोकप्रिय थे ।

परन्तु धीरे-धीर यहाँ क्रिकेट सभी खेलों को पछाड़ते हुए लोप्रियता के शिखर पर पहुँच गया । क्रिकेट के प्रति लोगों में एक प्रकार का जुनून सा है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब भी भारतीय क्रिकेट टीम का किसी अन्य टीम से मुकाबला होता है, तो यहाँ लोगों का जुनून देखने लायक होता है ।

हॉकी, फुटबॉल आदि खेलों की तुलना में क्रिकेट को मिलने वाली अधिक लोकप्रियता के कारण खोजना तो सम्भव नहीं है । परन्तु यह सत्य है कि क्रिकेट का जादू भारतवासियों के सिर चढकर बोलता है ।
यहाँ 4-5 वर्ष के बच्चे से लेकर 70-80 वर्ष के वृद्ध तक क्रिकेट के दीवाने हैं ।

भारत के गांव हों या शहर, गली मुहल्लों में, खुले मैदानों में, प्रत्येक स्थान पर क्रिकेट का खेल देखा जा सकता है । बच्चों के खिलौनों में क्रिकेट बैट का विशेष स्थान बन गया है । छोटे बच्चों के हाथों में लकड़ी का न सही, प्लास्टिक का क्रिकेट बैट अवश्य देखा जा सकता है ।

स्पष्टत: क्रिकेट को भारत में भरपूर प्रेम मिला है । लेकिन क्रिकेट ने भी भारत को अनेक अवसरों पर सम्मान दिलाया है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त यह खेल भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज, इग्लैंड, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, बंगला देश, जिम्बाब्बे, केन्या, हॉलैण्ड आदि देशों की टीम खेलती हैं और इनसे मुकाबले में भारत ने अनेकों बार विजय प्राप्त की है ।

क्रिकेट इन सभी देशों का प्रमुख खेल है । परन्तु चीन सहित अन्य साम्यवादी देश, जापान, अमरीका आदि देशों में क्रिकेट को पसन्द नहीं किया जाता । मुस्तिम देशों में भी केवल पाकिस्तान और बंगला देश के लोग ही क्रिकेट में रुचि रखते हैं । स्पष्टत: क्रिकेट विश्व के सभी देशों का प्रिय खेल नहीं है । परन्तु जहाँ भी यह खेला जाता है, वहाँ इसके दीवानों की कमी नहीं है ।

विशेषत: भारत में युवा पीढ़ी सिने कलाकार और क्रिकेट खिलाड़ी, इन दोनों से सर्वाधिक प्रभावित है । आज का नौजवान या तो फिल्म का हीरो बनने के सपने देखता है या क्रिकेट का खिलाड़ी । सिने कलाकारों को तो पहले से ही लोगों का प्रेम प्राप्त था । अत: बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ भी अपने उत्पादन के प्रचार के लिए सिने कलाकारों का वर्षो से इस्तेमाल कर रही थीं ।

लेकिन आज क्रिकेट खिलाड़ियों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनका भी कम्पनियों के उत्पादनों के प्रचार में भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है । आज किसी संस्था के द्वारा चंदे के रूप में धन एकत्र करने के लिए भी क्रिकेट खिलाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है ।

जिस प्रकार सिनेमा ने कलाकारों को पृथ्वी के सितारे बनाया, उसी प्रकार क्रिकेट ने खिलाड़ियों को पृथ्वी के सितारे बना दिया है । यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी सिने कलाकार बनना अधिक पसन्द करती है या क्रिकेट खिलाड़ी ।भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के चलते छोटे-बड़े क्रिकेट क्लब भी बन रहे हैं ।

राष्ट्रीय स्तर पर यहाँ रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी, विल्स ट्राफी आदि के जरिये राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय टीमों के लिए खिलाड़ियों का चयन किया जाता है । स्कूल-कॉलेज स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने वाले प्रतिभावान खिलाड़ियों को ही राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का अवसर प्राप्त होता है ।

चमकने वाले सितारे कम ही होते हैं । क्रिकेट सितारा बनने के सपने देखने वाले सभी नौजवानों की चाहत पूरी नहीं होती । परन्तु क्रिकेट का जुनून भारत के बच्चे-बच्चे पर है, इसमें संदेह नहीं है ।



Long Essay :  Mera Priya Khel Cricket | मेरा प्रिय खेल क्रिकेट | My favorite game cricket

My favourite game cricket | मेरा प्रिय खेल क्रिकेट


शरीर को स्वस्थ रखने की दृष्टि से खेलों का बड़ा महत्त्व है | खेल किसी भी व्यक्ति के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक है | खेलों से शरीर की मांसपेशियां एंव हड्डियां मजबूत बनी रहती हैं एंव रक्त का संचार भी सुचारु रहता है | शरीर को अतिरिक्त आक्सीजन मिलती है और फेफड़े मजबूत होते हैं | इन्हीं सब कारणों से खेल-कूद मेरा प्रिय शौक रहा है | वैसे तो मुझे सभी खेल अच्छे लगते हैं, किन्तु क्रिकेट मेरा प्रिय खेल है | इसका कारण इस खेल की विविधता है | हम अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार टेस्ट मैच, एक दिवसीय या फिर ट्वेन्टी-20 मैच का आनंद ले सकते हैं |

क्रिकेट की शुरुआत के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता | इसे भारत के गुल्ली-डंडे के खेल से भी जोड़कर देखा जाता है, किन्तु आधुनिक रूप में जिस नियोजित तरीके से क्रिकेट खेला जाता है, उसका श्रय इंग्लैंड को जाता है | विश्व की एक बड़ी आबादी का यह प्रिय खेल अब लगभग पूरी दुनिया में खेला जाता है |

मेरा प्रिय खेल क्रिकेट बनने के मूल में मेरा भाई भुवनेश्वर और लब्धप्रतिष्ठित बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर हैं | मेरा भाई भुनेश्वर जहां ट्वेन्टी-20 क्रिकेट का दीवाना है, वहीँ क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के तीनों ही रूपों के लिए सबसे उपयुक्त क्रिकेटर हैं | मेरा भाई पहले अंतर्विश्वविद्यालयी और फिर प्रादेशिक ट्वेन्टी-20 स्पर्धाओं में नाम कमा चुका है | सचिन तेंदुलकर ने तो रनों का ऐसा अंबार खड़ा कर दिया है कि किसी भी अन्य खिलाड़ी के लिए उसका स्पर्श कर पाना मुश्किल है |

इन दोनों ही की रन की भूख बढ़ने के साथ-साथ मेरी रूचि भी क्रिकेट में साथ-साथ बढ़ी है | मुझे जब भी अवसर मिलता है, मैं इन दोनों ही के द्वारा खेले जाने वाले मैचों का मजा ले लेता हूं | सचिन के लिए तो मेरी दीवानगी का यह आलम है कि जब वह खेलते हैं, तो मैं अपने समस्त कार्यों को लम्बित कर देता हूं | भुनेश्वर जहां ट्वेन्टी-20 में सबसे बेहतर प्रदर्शन करता है वहीं सचिन क्रिकेट के विविध रूपों में उनकी मांग के अनुरूप बहुआयामी प्रदर्शन करते हैं | बल्लेबाजी हो या आकस्मिक रूप से मिली गेंदबाजी, वे दोनों ही विधाओं में चमत्कारिक प्रदर्शन करते हैं | वर्ष 2011 के एक दिवसीय क्रिकेट विश्वकप जीत में सचिन का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है |

सचिन तेंदुलकर के अलावा क्रिकेट के कुछ ऐसे अन्य महान खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने क्रिकेट के प्रति मेरी रुचि को बढ़ाया है | इनमें कुछ पुराने तो कुछ नए खिलाडी हैं | पुराने खिलाड़ियों में जहां सुनील गवास्कर, श्रीकांत, संदीप पाटिल, मोहिन्दर अमरनाथ, कपिल देव व रवि शास्त्री के नाम लिये जा सकते हैं, वहीं नए खिलाड़ियों में विरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, महेंद्र सिंह धोनी, हरभजन सिंह व विराट कोहली को इसका श्रेय है | कुछ खिलाड़ियों ने क्रिकेट के रोमांच को उसके चरम पर पहुंचाने में अथक परिश्रम किया है | खिलाड़ियों की विशिष्ट शैली और उनके अंदाज ने उनके प्रशंसकों की संख्या को भी बढ़ाया है और यही कारण है कि क्रिकेट के विविध रूपों के साथ ही उनके प्रशंसकों की संख्या निरंतर ही बढ़ती जा रही है |

धीरे-धीरे ही सही पर प्रशंसकों के साथ-साथ क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती जा रही है | प्रत्येक विश्वकप में एक-दो नई क्रिकेट टीमों का प्रवेश अवश्य हो जाता है | वर्ष 2011 के एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप में तो नवांगतुक टीमों ने आश्चर्यजनक परिणाम भी दिए हैं |

हालाँकि कई बार इस खेल में मैच फिक्सिंग के आरोपों ने मुझे क्षुब्ध किया है, किन्तु यदि ईमानदारी एंव खेल भावना से खेला जाए, तो यह मुझे ही नहीं सभी को रोमांचित करता है |

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{{ शिष्टाचार पर निबंध }} | Etiquette - Shishtachar Essay In Hindi | Shishtachar par nibandh in Hindi

शिष्टाचार पर निबंध | Essay On Etiquettes In Hindi | Shishtachar Essay In Hindi | Shishtachar par Nibandh in Hindi


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Shishtachar | शिष्टाचार | Etiquette




शिष्टाचार पर निबंध | Essay On Etiquettes In Hindi | Shishtachar Essay In Hindi | Shishtachar par Nibandh in Hindi


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Short Essay on  :   Etiquettes | शिष्टाचार |  Shishtachar



Shishtachar | शिष्टाचार | Etiquette


शिष्टाचार हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। विनम्रता, सहजता से वार्तालाप, मुस्कराकर जवाब देने की कला प्रत्येक व्यक्ति को मोहित कर लेती है। जो व्यक्ति शिष्टाचार से पेश आते हैं वे बड़ी-बड़ी डिग्रियां न होने पर भी अपने-अपने क्षेत्र में पहचान बना लेते हैं। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे शख्स से शिष्टाचार और विनम्रता की आकांक्षा करता है।

शिष्टाचार का पालन करने वाला व्यक्ति स्वच्छ, निर्मल और दुर्गुणों से परे होता है। व्यक्ति की कार्यशैली भी उसमें शिष्टाचार के गुणों को उत्पन्न करती है। सामान्यत: शिष्टाचारी व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाला होता है।

अध्यात्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का जन्म किसी वजह से हुआ है। हमारे जीवन का उद्देश्य ईश्वर की दिव्य योजना का एक अंग है। ऐसे में शिष्टाचार का गुण व्यक्ति को अभूतपूर्व सफलता और पूर्णता प्रदान करता है।
यदि व्यक्ति किसी समस्या या तनाव से ग्रस्त है, लेकिन ऐसे में भी वह शिष्टाचार के साथ पेश आता है तो अनेक लोग उसकी समस्या का हल सुलझाने के लिए उसके साथ खड़े हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं भी समस्या के समाधान तक पहुंच जाता है। शिष्टाचार को अपने जीवन का एक अंग मानने वाला व्यक्ति अकसर अहंकार, ईष्र्या, लोभ, क्रोध आदि से मुक्त होता है। ऐसा व्यक्ति हर जगह अपनी छाप छोड़ता है। कार्यस्थल से लेकर परिवार तक हर जगह वह और उससे सभी संतुष्ट रहते हैं। शिष्टाचारी व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति सद्विचारों से पूर्ण व सकारात्मक नजरिया रखता है। उसके मन के सद्भाव उसे प्रफुल्लित रखते हैं। चिकित्सा विज्ञान भी अब इस तथ्य को सिद्ध कर चुका है कि अच्छे विचारों का प्रभाव मन पर ही नहीं, बल्कि तन पर भी पड़ता है।

मस्तिष्क की कोशिकाएं मन में उठने वाले विचारों के अनुसार कार्य करती हैं। इसके विपरीत नकारात्मक विचारों का मन व तन पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। जेम्स एलेन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि अच्छे विचारों के सकारात्मक व स्वास्थ्यप्रद और बुरे विचारों के बुरे, नकारात्मक व घातक फल आपको वहन करने ही पड़ेंगे। व्यक्ति जितना अधिक अपने प्रति ईमानदार और शिष्टाचारी होता है वह उतनी ही ज्यादा सच्ची और वास्तविक खुशी को प्राप्त करता है।


Medium Essay on  :   Etiquettes | शिष्टाचार |  Shishtachar



शिष्ट या सभ्य पुरुषों का आचरण शिष्टाचार कहलाता है । दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार, घर आने वाले का आदर करना, आवभगत करना, बिना द्वेष और नि:स्वार्थ भाव से किया गया सम्मान शिष्टाचार कहलाता है ।

शिष्टाचार से जीवन महान् बनता है । हम लघुता सं प्रभुत्ता की ओर, संकीर्ण विचारों से उच्च विचारों की ओर, स्वार्थ से उदार भावनाओं की ओर, अहंकार से नम्रता की ओर, घृणा से प्रेम की ओर जाते हैं । शिष्टाचार का अंकुर बच्चे के हृदय में बचपन से बोया जाता है । छात्र जीवन में यह धीरे-धीरे विकास की ओर अग्रसर होता है ।

शिक्षा समाप्त होने पर और समाज में प्रवेश करने पर यह फलवान् होता है । यदि उसका आचरण समाज के लोगों के प्रति घृणा और द्वेष से भरा हुआ है, तो वह तिरस्कृत होता है, साथ ही उन्नति के मार्ग बंद होने प्रारम्भ हो जाते हैं, उच्च स्तर प्राप्त करने की आकाक्षाएं धूमिल हो जाती हैं । इसके विपरीत मधुरभाषी शिष्ट पुरुष अपने आचरण से शत्रु को मित्र बना लेता है । उन्नति के मार्ग स्वत: खुल जाते हैं ।

बच्चे का पहले गुरु उसके माता-पिता हैं जो उसे शिस्टाचार का पहला पाठ पढ़ाते हैं । दूसरा पाठ वह विद्यालय में जाकर अपने आचार्य या गुरु से पढ़ता है । ज्ञान के बिना छात्र का जीवन अधूरा है । प्राचीन काल में एकलव्य, कर्ण, उपमन्यू इत्यादि ने गुरु की महिमा और गुरु भक्ति दोनों को अमर कर संसार में गुरु-महत्ता का उदाहरण प्रसूत किया ।

विनम्रता शिष्टाचार का लक्षण है । किसी के द्वारा बुलाए जाने पर हाँ जी, नहीं जी, अच्छा जी कहकर उत्तर देना चाहिए । घर आए मेहमानों का मुस्कराकर स्वागत करना उनका अभिवादन करना शिष्टाचार है । रेलगाड़ी या बस में वृद्ध, औरतों, बच्चों को सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, दूसरों की बातों में दखल न लेना, रोगी को अस्पताल ले जाना, दूसरों के मामलों में रुचि न लेना, दु:खी व्यक्ति को सान्त्वना देना, कष्ट में मित्र की सहायता करना शिष्टाचार है ।

शिष्टाचार के विपरीत आचरण जैसे- दूसरों को देखकर अकारण मुस्कराना, दूसरों की बात काटकर अपनी बात कहना, सड़क पर चलते हुए लोगों से गाली-गलौच करना, लड़कियों को छेड़ना, उन्हें आँख फाड़कर देखना, दुर्घटना से घायल हुए व्यक्ति को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना, पर निन्दा में रुचि रखना अशिष्टता है ।

समाज, धर्म, पुस्तकालय, विद्यालय, सरकारी संस्थाएं और व्यक्तिगत संस्थाएं इनके अपने-अपने नियम होते हैं । जैसे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में जूते पहनकर जाना मना है, हमें यहाँ पर उन नियमों का पालन करना चाहिए । पुस्तकालय में जाकर जोर से बोलना, पुस्तकें फाड़ना, उन्हें देर से वापिस करना शिष्टाचार के विरूद्ध है 

अध्यापक की अनुपस्थिति में अनुशासन भंग करना, गृह कार्य न करके लाना, कक्षा टैस्ट की तैयारी लगन के साथ न करना, राष्ट्र ध्वज का अपमान करना या उन्हें जलाना अपराध ही नहीं, अशिष्टाचार भी है । यह संसार शिक्षा का केन्द्र हैं । जहाँ जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता है । जो व्यक्ति इस ज्ञान को अपने अन्त: करण में समेट लेता है वह देववत् हो जाता है । अत: मनुष्य को प्रार्थना करनी चाहिए-



Long Essay on  :   Etiquettes | शिष्टाचार |  Shishtachar



Shishtachar | शिष्टाचार | Etiquette



एक व्यक्ति नौकरी के लिए साक्षात्कार में सम्मिलित हुआ, उसकी नियुक्ति की संभावना अधिक थी, क्योंकि उसके पास पद के अनुकूल पर्याप्त शैक्षिक योग्यता थी | किन्तु, साक्षात्कार के बाद निकले परिणाम में अपना नाम न देखकर उसे आश्चर्य हुआ | उसमें संस्थान के प्रबंधक से इस बारे में बात की | प्रबंधक ने जवाब दिया कि वास्तव में आपके पास पद के अनुकूल शैक्षिक उपाधियां तो हैं, किन्तु आपने अभी तक भी उपयुक्त व्यवहार करना नहीं सीखा है | साक्षात्कार के दौरान ही नियोक्ता को यह आभास हो गया था कि वह व्यक्ति अत्यधिक घमंडी एवं अशिष्ट है | इसलिए उपयुक्त शैक्षिक योग्यता के रहते हुए भी उसे नियुक्त नहीं किया गया | इस तरह स्पष्ट है कि किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए व्यक्ति का आचरण सही होना चाहिए | व्यक्ति का जैसा आचरण होगा, उसी के अनुकूल उसे परिणाम भी प्राप्त होगा | कोई व्यक्ति कम योग्यता रखते हुए भी कम समय में अपने सदआचरण एंव व्यवहार कुशलता के कारण सफलता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ सकता है और कोई अत्यधिक उपाधियों से युक्त होने के बावजूद भी जीवन भर असफल ही रह सकता है | इसलिए अंग्रेजी में कहा गया है- “इट इज योर एटीट्यूड, मोर दैन योर एप्टीट्यूड, दैट डिटरमाइन्स योर एल्टीट्यूड”, अर्थात “आपकी योग्यता से कहीं अधिक आपका व्यवहार आपकी ऊंचाई को निर्धारित करता है |”

‘शिष्टाचार’ दो शब्दों ‘शिष्ट’ एंव ‘आचार’ के मेल से बना है | शिष्ट का अर्थ होता है- सभ्य, उचित अथवा सही तथा आचार का अर्थ होता है- व्यवहार | व्यक्ति को हर समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह किससे बात कर रहा है, कहां बात कर रहा है एंव क्यों बात कर रहा है | उदाहरण के तौर पर पति-पत्नी यदि सार्वजनिक स्थल पर सबके सामने अंतरंग बातें करते हैं, तो इसे अशिष्टता ही कहा जाएगा | सामान्य व्यवहार ही नहीं बातचीत करने के ढंग से भी व्यक्ति के व्यवहार का पता चल जाता है | इसलिए किसी भी बातचीत में शिष्टाचार के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए | बातचीत करते हुए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम किससे बात कर रहे हैं | बड़ों से बात करते हुए हमें आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करना ही चाहिए |

सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान, किसी व्यक्ति से गाली-गलौज, अपने साथियों से अकड़कर बात करना, राह चलते किसी से बिना-वजह झगड़ना इत्यादि अशिष्ट आचरण के उदाहरण हैं | बड़ों का आदर-सम्मान करना, अपने मित्रों एंव सहयोगियों के प्रति सहयोगात्मक रवैया, छोटों के प्रति स्नेह की भावना, सकरात्मक विचारधारा, स्थान-विशेष के अनुकूल व्यवहार इत्यादि शिष्टाचार के उदहारण हैं | शालीनता एवं विनम्रता शिष्टाचार के ही घटक हैं |

प्रायः संस्कृति में अंतर के कारण भी शिष्टाचार एवं सामान्य व्यवहार में अंतर होता है | पश्चिमी देशों में जिसे सामान्य व्यवहार कहा जाता है, वह आवश्यक नहीं कि भारत में भी सामान्य ही माना जाए | पश्चिमी देशों में खुलेआम लोग अपने प्रेम का प्रदर्शन करते दिखते हैं | वहां सार्वजनिक स्थलों पर प्रेमी जोड़े को एक-दूसरे से प्रेमलाप में लिप्त दिखना सामान्य बात है | किन्तु, भारतीय सभ्यता-संस्कृति इस बात की कतई अनुमति नहीं देती |

कोई व्यक्ति अपने घर पर जिस तरह अपनी इच्छानुसार रहता है, उस तरह उसे बाहर रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है | सार्वजनिक स्थलों पर रहते हुए भी इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि हमारा कोई आचरण अशिष्ट न हो | बस, ट्रेन या किसी गाड़ी में सफर करते समय धूम्रपान करना अशिष्टता की निशानी है | ऐसा करते वक्त लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते कि इससे किसी अन्य यात्री को तकलीफ भी हो सकती है | किसी विद्यालय, महाविद्यालय अथवा कार्यालय में व्यक्ति का व्यवहार संस्थान के नियमों के अनुकूल होना चाहिए |

अशिष्ट आचरण युद्ध, झगड़े एंव गलतफहमी का कारण बनता है | अशिष्ट आचरण के परिणामस्वरुप व्यक्ति अपने उद्देश्य में असफल हो सकता है | यदि दुकानदार अपने ग्राहकों से अशिष्टता करे, तो उसके यहां आने वाले ग्राहकों की संख्या निस्संदेह कम होती चली जाएगी और एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि उसे अपनी दुकान ही बंद करनी पड़े | यदि विद्यालय में शिक्षक का आचरण सही न हो, तो इसका दुष्प्रभाव छात्रों पर भी पड़ सकता है | और, ऐसी स्थिति में कोई भी समझदार प्राचार्य या विद्यालय प्रबंधक ऐसे शिक्षक को अपने संस्थान में रहने नहीं देना चाहेगा | इस तरह, यदि कर्मचारी कार्यालय में अपने संस्थान के नियमानुकूल व्यवहार न करें तो उसे उसकी नौकरी से वंचित किया जा सकता है |

शिष्टाचार व्यक्ति को अनुशासन की प्रेरणा देता है | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | अनुशासन के बिना किसी भी समाज में अराजकता का माहौल व्याप्त होना स्वाभाविक है | इसी तरह एक परिवार के सदस्य यदि अनुशासित न हों, तो उस परिवार का अव्यवस्थित होना स्वाभाविक है | सरकारी कार्यालयों में यदि कर्मचारी अनुशासित न हो, तो वहां भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाएगा | अनुशासन न केवल व्यक्तिगत हित बल्कि सामाजिक हित के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है | किन्तु, वही मनुष्य अनुशासित रह सकता है, जो शिष्टाचारी हो |

व्यक्ति को शिष्ट आचरण की शिक्षा अपने घर, परिवार, समाज एवं स्कूल से मिलती है | बच्चे का जीवन उसके परिवार से प्रारंभ होता है | यदि परिवार के सदस्य गलत आचरण करते हैं, तो बच्चा भी उसी का अनुसरण करेगा | परिवार के बाद बच्चा अपने समाज एंव स्कूल से सीखता है | यदि उसके साथियों का आचरण खराब होगा तो उससे उसके भी प्रभावित होने की पूरी संभावना बनी रहेगी | यदि शिक्षक का आचरण गलत है, तो बच्चे कैसे सही हो सकते हैं | इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अनुशासित हो, तो इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने आचरण में सुधार लाकर स्वयं अनुशासित रहते हुए बाल्यकाल से ही बच्चों में अनुशासित रहने की आदत डालें | वही व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रह सकता है, जिसे बाल्यकाल में ही अनुशासन की शिक्षा दी गई हो | बाल्यकाल में जिन बच्चों पर उनके माता-पिता लाड-प्यार के कारण नियंत्रण नहीं रख पाते वही, बच्चे आगे चलकर अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते | अनुशासन के अभाव में कई प्रकार की बुराइयां समाज में अपनी जड़ें विकसित कर लेती हैं | छात्रों के नित्य-प्रति होने वाले विरोध-प्रदर्शन, परीक्षा में नकल, शिक्षकों से बदसलूकी अनुशासनहीनता के ही उदाहरण हैं | इसका खामियाजा उन्हें बाद में जीवन की असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है, किन्तु जब तक वे समझते हैं तब तक देर हो चुकी होती है | इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति शिष्टाचार का पालन करे | क्योंकि एक व्यक्ति का व्यवहार एंव आचरण ही दूसरे लोगों में उसके प्रति दृष्टिकोण निर्धारित करता है | इस प्रकार शिष्टाचार सफलता का मापदंड भी है |

Note :-   कृपया ध्यान दें: इस वेबसाइट का उद्देश्य विद्यार्थियों को नक़ल करना सिखाना नहीं है, बल्क़ि जिन विद्यार्थियों को हिन्दी निबंध लिखने में कठिनाई मेहसूस हो रही हो उनके लिए हैं | विद्यार्थियों से निवेदन है की यहाँ दिए गए निबंदो को पढ़े, समझें और अपने शब्दोँ में खुद से लिखने का प्रयास करें


शिष्टाचार पर निबंध | Essay On Etiquettes In Hindi | Shishtachar Essay In Hindi | Shishtachar par Nibandh in Hindi


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{{ विज्ञान के चमत्कार पर निबंध }} Essay On Vigyan Ke Chamatkar In Hindi language | Vigyan Ke Chamatkar Par Nibandh in Hindi

विज्ञान के चमत्कार पर निबंध |  Essay On Vigyan Ke Chamatkar In Hindi language | Vigyan Ke Chamatkar Par Nibandh in Hindi | Magic Of Science essay


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विज्ञान के चमत्कार | Vigyan Ke Chamatkar | Magic Of Science



विज्ञान के चमत्कार पर निबंध |  Essay On Vigyan Ke Chamatkar In Hindi language | Vigyan Ke Chamatkar Par Nibandh in Hindi | magic of Science

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Small Essay 1 :-  विज्ञान के चमत्कार |  Vigyan Ke Chamatkar | Magic of Science

Vigyan | Science


आज विज्ञान का युग है। जिधर दृष्टि डालो, विज्ञान के चमत्कार दिखायी पड़ते हैं। हमें उपलब्ध सभी सुख सुविधायें विज्ञान की ही देन है। विज्ञान ने हमें जादू नगरी में पहुंचा दिया है। जहां पर हमारी जरूरत की प्रत्येक वस्तु उपलब्ध है। बिजली और उससे चलने वाले सभी उपकरण, रेल, वायुयान, राकेट विज्ञान की ही देन है।

विज्ञान हमारी प्रगति और विकास का आधार है। आज हम इसके बिना जीवन व्यतीत करने के बारे में सोच भी नहीं सकते। पूरा विश्व आज हमारी पहुंच के अंदर है- सोचो और पलक झपकते सब कुछ सम्भव हो जाता है।
विज्ञान से हमारे जीवन के सभी क्षेत्र प्रभावित और उन्नत हुये हैं। शिक्षा और मनोरंजन दोनों के लिये रेडियो, दूरदर्शन, कंप्यूटर, देशी विदेशी पत्र पत्रिकायें, दूर संचार के साधन उपलब्ध हैं। दुसाध्य बीमारियों के इलाज के लिये औषधियां एवं उपचार के साधन मौजूद हैं। पृथ्वी को नाप कर, समुन्द्र को लांघकर इंसान ने आकाश की ऊंचाईयों को विज्ञान द्वारा ही हासिल किया है। चांद भी आज अछूता नहीं रहा।

फोन अब मोबाइल हो गये हैं। इण्टरनेट एवं ई मेल से बातें की जाती हैं। ज्ञान की कोई सीमा नहीं रही। हर क्षेत्र परिचित सा और हर क्षेत्र का असीमित विस्तार हो गया है।

लेकिन विज्ञान ने जहां इंसान को इतने सुख दिये, लाभ पहुंचाये वहां उसके कुछ नुकसान भी हैं। विज्ञान जितना कल्याणकारी है उतना विनाशकारी भी है। विज्ञान ने मानव की इच्छाओं को असीमित कर उसे भौतिकवादी बना दिया है। उसके हाथ में परमाणु शक्ति देकर युद्ध का खतरा खड़ा कर दिया है। लेकिन सच मानें तो यह विज्ञान का दोष नहीं है। यह तो मानव द्वारा विज्ञान के उपयोग पर निर्भर है।

विज्ञान का सदुपयोग वरदान है तो उसका दुरूपोग अ​भिशाप है। अभी तो विज्ञान की चकाचौंध में इंसान डूब गया है। भौंचक्का सा उसका उपभोग करने में मग्न है। परन्तु हमें इसकी बुराइयों पर भी नजर डालनी होगी तभी विज्ञान हमारे लिए वरदान सिद्ध होगा।


Medium Essay 2 :-  विज्ञान के चमत्कार |  Vigyan Ke Chamatkar | Magic of Science



आधुनिक युग विज्ञान का युग है. विज्ञान ने मनुष्य के जीवन में महान परिवर्तन ला दिया है. मनुष्य के जीवन को नए-नए वैज्ञानिक आविष्कारो से सुख-सुविधा प्राप्त हुई है. प्राय: असम्भव कही जाने वाली बाते भी सम्भव प्रतीत होने लगी है. मनुष्य विज्ञान के सहारे आज चन्द्रमा तक पहुँच सका है. सागर की गहराइयो में जाकर उसके रहस्य को भी खोज लाया है.

भीषण ज्वालामुखी के मुँह में प्रवेश कर सका है. पृथ्वी की परिक्रमा कर चूका है. बंजर भूमि को हरा भरा बनाकर भरपूर फसलें उगा सका है. विज्ञान की सहायता से मनुष्य का जीवन सुखमय हो गया है. आज घरों में विज्ञान की देन हीटर, पंखे, रेफ्रीजरेटर, टेलीविजन, गैस, स्टोव, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टेलीफोन स्कूटर आदि वस्तुए दिखाई देती है. गृहणियों के अनेक कार्य आज विज्ञान की सहायता से सरल बन गए है.
बिज्ञान की सहायता से आज समय और दूरी का महत्व घट गया है. आज हजारों मील की दूरी पर बैठा हुआ मनुष्य अपने मित्रों और सम्बंधियो से इस प्रकार बात कर सकता है जैसे की सामने बैठा हुआ हो. आज दिल्ली में चाय पीकर, भोजन बॉम्बे में और रात्री विश्राम लन्दन में कर सकना सम्भव है. ध्वनि की गति से तेज चलने वाले ऐसे विमान और एयर बस है. रेल, मोटर, ट्राम, जहाज, स्कूटर आदि आने जाने में सुविधा प्रदान करते है. टेलीप्रिंटर, टेलीफोन, टेलीविजन मनुष्य के लिए बड़े उपयोगी साधन सिद्ध हुए है. विज्ञान की सहायता से समाचार एक स्थान से दुसरे स्थान पर शीघ्र स्थान पर शीघ्र से शीघ्र पहुँचाये जा सकते है. रेडियो फोटो की सहायता से चित्र भेजे जा सकते है. लाहौर में खेला जाने वाल क्रिकेट मैच दिल्ली में देखा जा सकता है. एक घंटे में एक पुस्तक की हजारो प्रतियाँ छापी जा सकती है. आवाज को टैपरिकॉर्डर और ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड पर कैद किया जा सकता है.

चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन भुलाई नही जा सकती. एक्स रे मशीन की सहायता से शरीर के अन्दर के भागों का रहस्य जाना जा सकता है. शरीर के किसी भी भाग का ऑपरेशन किया जा सकना सम्भव है. शरीर के अंग बदले जा सकते है. खून परिवर्तन किया जा सकता है. प्लास्टिक सर्जरी से चेहरे को ठीक किया जा सकता है. भयानक बीमारियों के लिए दवाये और इंजेक्शन खोजे जा चुके है. कृषि के शेत्र में नवीन वैज्ञानिक अविष्कारों ने कृषि उत्पादन में तो वृद्धि की ही है, साथ ही भारी-भारी कार्यो को सरल भी बना दिया है. कृषि, यातायात संदेश वाहन, संचार मनोरंजन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विज्ञान की देन अमूल्य है.


Long Essay 3 :-  विज्ञान के चमत्कार |  Vigyan Ke Chamatkar | Magic of Science

Vigyan


विज्ञान के चमत्कार

भूमिका-आज का युग विज्ञान का युग है । इसने भूखे को भोजन दिया, नंगे को वस्त्र दिया, रोगी को औषधि और स्वास्थ्य दिया, निर्धन को धन दिया और बेकार को रोजगार दिया । अन्धे को आँखें, लंगड़े को टांगें और बहरे को कान दिए । विज्ञान की कृपा से ही आज के मानव का जीवन भरा-पूरा दिखाई देता है । हमारा जीवन सुख और वैभव से भर गया है । अब हम विज्ञान के बिना एक पल भी रहने की कल्पना नहीं कर सकते ।

यातायात के साधन- आज मोटर, रेलगाड़ी, वायुयान आदि की सहायता से दिनों की यात्रा घण्टों में -तय कर सकते हैं । अब व्यक्ति मुम्बई में प्रात: नाश्ता खा कर लन्दन में दोपहर का भोजन खा सकता है । वह पृथ्वी का चक्कर भी लगा सकता है । प्रतिनिधि मण्डल एक देश से दूसरे देश में -जाते हैं, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होते हैं ।

संचार साधन- पत्र व्यवहार, तार, टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, 2 जी, 3 जी, 4 जी आदि सुविधाओं से संचार क्षेत्र में क्रांति विज्ञान का अद्‌भूत चमत्कार है । घर बैठे दुनिया से संपर्क क्षणों में हो जाता है ।

अणु शक्ति- अणु शक्ति का विकास विज्ञान का महत्त्वपूर्ण चमत्कार है । अणु शक्ति को विनाश से हटा कर यदि रचना की ओर लगाया जाये तो इससे मानव जाति का बड़ा हित हो सकता है । रेगिस्तान को हरे-भरे खेतों में बदला जा सकता है । किलों और दुर्गम पर्वतों को तोड़ कर बांध बनाए जा सकते हैं । बनावटी वर्षा की जा सकती है । गर्मी और सर्दी पैदा की जा सकती है । परमाणु शक्ति से उत्पन्न बिजली बहुत सस्ती पड़ती है ।

चिकित्सा के क्षेत्र- में आइसोटोप का निर्माण मुम्बई से 15 मील दूर ट्राम्बे नामक स्थान में हो रहा है । आइसोटोप के द्वारा अनेक औषधियां बनने लगी हैं । कैंसर जैसा असाध्य रोग रेडियो-सक्रिय वोल्ट से ठीक हो सकता है । रेडियो-सक्रिय फॉस्फोरस से हड्डियों के रोग दूर किए जा सकते हैं । रेडियो-सक्रिय लोह रक्त रोगों के लिए राम बाण औषधि है । आइसोटोप द्वारा कृषि में भी अभूतपूर्व क्रान्ति हो रही है । एरोस्पोरीन नामक औषधि कूकर खांसी के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही है । परिवार नियोजन के क्षेत्र में भी विज्ञान उपयोगी सिद्ध हो रहा है ।

औद्योगिक क्षेत्र में- विज्ञान ने सुखोपभोग के लिए अनेकप्रकार की सामग्री जुटाई है । पहले लोग ऊन या सूत केवस्त्र पहनते थे । अब नाइलोन और टैरालीन के वस्त्र पहनते हैं । ये वस्त्र अधिक. चलने वाले और चमकीले होते हैं । आज के विशाल कारखाने देखते ही देखते माल का ढेर लगा देते हैं । इनमें बहुत-सी मशीनें अपने आप चलने वाली होती हैं । आज हमारे देश के इंजन, बिजली का सामान, टेलीफोन, मशीनें, खिलौने, जूते विदेशों में बहुत बड़ी संख्या में भेजे जाते हैं ।

मनोरंजन के क्षेत्र में- मनोरंजन के क्षेत्र में भो विज्ञान ने बड़ा योगदान दिया है । चल-चित्र, रेडियो, रेडियोग्राम तथा टेलीविजन आदि द्वारा हमारा मनचाहा मनोरंजन होता है । रेडियोग्राम से जब चाहें अच्छे-से – अच्छे संगीतकार के गीत सुन सकते हैं । सिनेमा से हम अच्छे कलाकारों का अभिनय देखकर मन बहला सकते हैं । रेडियो द्वारा घर बैठे संगीत, नाटक, भाषण और समाचार सुन सकते हैं । टेलीविजन चल-चित्र का ही लघु रूप है । एक दिन ऐसा आएगा जब परदे पर दिखाए जाने वाले फूलों की सुगन्ध का आनन्द भी घर बैठे ले सकेंगे ।

गणित के क्षेत्र में- यन्त्र मस्तिष्क’ विज्ञान की अद्‌भुत देन है । यह यन्त्र लाखों की जोड़, घटा और गुणा देखते-ही-देखते कर देता है । बड़े-बड़े बैंकों र फर्मों और कार्यालयों में इसी से काम होता है ।

कृषि क्षेत्र में- अब ऐसी मशीनें बन गई हैं जो जोतने, बोने, फसल काटने, अनाज तैयार करने आदि का काम भी करती . हैं । कीटाणुनाशक दवाइयां छिड़क कर फसलों को रोगों से बचाया जाता है । रासायनिक खाद से फसल दुगुनी-चौगुनी पैदा की जा सकती है ।

विज्ञान की अद्‌भुत देन बिजली- आज बिजली ने मनुष्य का बड़ा कल्याण किया है । बटन दबाते ही घर में प्रकाश हो जाता है । पंखे और वातानुकूलित कमरे इसकी ही देन हैं । हीटर से कमरे गर्म किए जाते हैं । भोजन, चाय, वस्त्र, प्रक्षालन, भवन की सफाई आदि सब कार्य बिजली की सहायता से होते हैं । रेलगाड़ियाँ मैर्टो, बसें, ट्रामें भी बिजली की सहायता से चलती हैं । लिफ्ट नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे ले जाती है । प्रेस के आविष्कार ने ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों को सुलभ बना दिया है ।

दोष- विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को जहां स्वर्गमय -बना दिया है वहां अपने भयंकर रूप से उसके जीवन को नरकमय भी बना सकता है । विज्ञान के बल पर मनुष्य ने नेपाम बम, एटम बम तथा हाइड्रोजन बम आदि ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाए है जो पल भर में मनुष्य के जीवन को नष्ट कर सकते हैं । दूसरे महायुद्ध में अमेरिका ने एटम बम गिराकर जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों को ध्वस्त कर दिया था । विज्ञान द्वारा जहरीली गैसें छोड़ी जा सकती हैं । विज्ञान ने मनुष्य को आलसी बना दिया है । विज्ञान के युग में पला मनुष्य नास्तिक बनता जा रहा है । अत: कहा जा सकता है कि विज्ञान अभिशाप भीहै ।

उपसंहार- स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान ने मनुष्य को अनेक प्रकार से सुखी बना दिया है । यदि वह इसका ठीक उपयोग करे तो वह इस पृथ्वी पर ही स्वर्ग ला सकता है । आवश्यकता है परमाणु अस्त्रों -शस्त्रों की होड़ से बचने की ।


Long Essay 4 :-  विज्ञान के चमत्कार |  Vigyan Ke Chamatkar | Magic of Science

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मनुष्य आरम्भ से ही कुछ न कुछ जानकारी प्राप्त करने की कोशिश में रहा है। अपनी इस इच्छा के कारण ही उसने विभिन्न प्रकार के ज्ञान को प्राप्त कर लिया है। सामान्य ज्ञान से विशेष ज्ञान की प्राप्ति को ही विज्ञान कहते हैं। अति प्राचीन काल में मनुष्य की इच्छाएँ और आश्वयकताएँ बहुत कम थीं, परन्तु जब उसकी इच्छाएँ और आश्वयकताएँ बढ़ने लगीं, तब इन बढ़ती हुई आश्वयकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य विज्ञान के द्वारा नये नये आविष्कारों को करने लगा। उसे कभी सफलता मिली, तो कभी असफलता मिली, लेकिन इससे उसने अपने अपार उत्साह और दिलेरी से एक से एक महान आविष्कारों को प्राप्त कर लिया।

विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने एक से एक बढ़कर चमत्कारी आविष्कार कर लिया। विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने ऐसे चमत्कारी आविष्कारों को प्राप्त कर लिया जिसे देखकर देव शक्तियां दाँतों तले अंगुली दबा लेती हैं, क्योंकि मनुष्य द्वारा किए गए खोज और उससे प्राप्त सुविधाएँ देव शक्ति से कहीं बढ़कर अधिक प्रभावशाली और उपयोगी सिद्ध होती हैं।

विज्ञान ने प्राचीन काल के ऋषियों-मुनियों और गुरूओं के मंत्रों और अस्त्रों के प्रयोग को आज विभिन्न प्रकार के आविष्कारों द्वारा सत्य कर दिया है। रामायण काल के पुष्पक विमान, वर्षा, अग्नि, वायु आदि की शक्तियों को प्रकट करने वाले वाणों, समुन्द्र सोख कर जमीन निकालने वाले मंत्र से चलने वाले अद्भुत वाण-अस्त्र, महाभारतकालीन संजय की प्राप्त हुई दिव्य-दृष्टि आदि को साक्षात् और सत्य करने के लिए विज्ञान ने हमें टेलीविजन, टेलीफोन, टेलीप्रिन्टर, टेपरिकार्डर, मिसाइल, उपग्रह, अणु बम, गर्म और अन्य प्रकार के उपग्रह, रडार, दूरमारक यंत्र आदि उपलब्ध करा दिया है।

विज्ञान ने मनुष्य को वरदान स्वरूप सब कुछ प्रदान किया है। इसने हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को तीव्रगति से प्रभावित किया है, उदाहरण के लिए यात्रा, अध्ययन, व्यापार, उद्योग, दर्शन, उत्पादन, मनोविनोद, ध्वनि, संदेश, संचार आदि के क्षेत्र में विज्ञान ने विभिन्न प्रकार के साधन और आधार प्रस्तुत किये हैं। फलस्वरूप आज हम मानव नहीं रह गये हैं, अपितु देवत्व को प्राप्त होकर देव शक्तियों को चुनौती दे रहे हैं।

यात्रा के क्षेत्र में विज्ञान ने मनुष्य को बहुत से साधन प्रदान किए हैं, जैसे साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, कार, मोटरकार, बस, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि। इन साधनों के द्वारा आज मनुष्य को तनिक भी पैदल चलने की आश्वयकता नहीं पड़ती है, बल्कि वह पलक गिरते गिरते ही बहुत दूर निकल जाता है। आज मनुष्य को रावण के पुष्पक विमान की तरह मन की गति से चलने वाले बहुत प्रकार के वायुयान प्राप्त हो चुके हैं। इससे वह आकाश की अधिक से अधिक ऊँचाई पर हवा के समान जिस दिशा में चाहे आ जा रहा है। धरती की यात्रा करने के लिए तो विज्ञान ने हमें जो भी स्कूटर, मोटरकार, बस, रेलगाड़ी आदि प्रदान किए हैं। वे एक दूसरे में अद्भुत और बेमिसाल हैं।

अंतरिक्ष की कठिन से कठिन बातों की जानकारी प्राप्त करने में आज विज्ञान सफल हो रहा है। उसने चाँद का पता लगा लिया है। उसने मौसम सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त कर ली है। चाँद से अब वह मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी कर रहा है। इसके बाद वह अन्य ग्रहों पर भी जा सकेगा, ऐसा विश्वास उसको मिली हुई सफलताओं के आधार पर आज करते जा रहे हैं, क्योंकि प्रकृति की सारी शक्तियाँ आज मनुष्य के आगे हाथ बाँधे खड़ी हैं।

विज्ञान ने हमारी बुद्धि, ज्ञान और सोच समझ को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के साधन दिये हैं। आज हमें अपने ज्ञान की वृद्धि के लिए किसी पुस्तकालय और किसी ज्ञान मंडल या विशेष स्थान पर जाने की कोई बहुत अधिक आश्वयकता नहीं होती है। आज हम घर बैठे ही टेलीविजन, रेडियो, वी सी आर, वी डी ओ, टेपरिकार्डर, वीडियो गेम, फोटो कैमरा आदि के द्वारा मनोरंजन प्राप्त करते हुए ज्ञान की वृद्धि भी कर रहे हैं। विज्ञान के साधनों के द्वारा हम अत्यधिक दूर के मनुष्य को देख, सुन और समझ सकते हैं। रेडियो और टेलीविजन का कार्य इस क्षेत्र में सर्वोपरि है।

विज्ञान की सहायता से हम बड़ी मशीनों छोटी मशीनों को बनाते हैं, जो हमारे उद्योगों के काम आकर हमारे उत्पादन को बढ़ाती है। इन्हीं उद्योगों के द्वारा हमें रोटी, कपड़ा और मकान की प्राप्ति हो जाती है, जो हमारे जीवन की पहली आश्वयकता है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने एक महान क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। कठिन से कठिन रोगों के इलाज के लिए एक से एक यंत्र हमें आज उपलब्ध हो गये हैं। एक्सरे का कार्य इसके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस प्रकार विज्ञान ने हमें विभिन्न प्रकार के चमत्कारों को प्रदान किया है।

Note :-   कृपया ध्यान दें: इस वेबसाइट का उद्देश्य विद्यार्थियों को नक़ल करना सिखाना नहीं है, बल्क़ि जिन विद्यार्थियों को हिन्दी निबंध लिखने में कठिनाई मेहसूस हो रही हो उनके लिए हैं | विद्यार्थियों से निवेदन है की यहाँ दिए गए निबंदो को पढ़े, समझें और अपने शब्दोँ में खुद से लिखने का प्रयास करें


विज्ञान के चमत्कार पर निबंध |  Essay On Vigyan Ke Chamatkar In Hindi language | Vigyan Ke Chamatkar Par Nibandh in Hindi

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हिन्दी दिवस पर निबंध | Hindi Diwas Essay In Hindi | Hindi Diwas par Nibandh | Short Essay on Hindi Diwas In Hindi Language



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हिन्दी दिवस | Hindi DIwas - India 


हिन्दी दिवस पर निबंध | Hindi Diwas Essay In Hindi | Hindi Diwas par Nibandh | Short Essay on Hindi Diwas In Hindi Language



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Hindi Diwas Kya hai :-


हिंदी हमारी मात्र भाषा है और इस भाषा के प्रति हमारे मन में लगाव होना चाहिए। अपनी भाषा तो भावनात्मक रूप से हमारे दिल में बसनी चाहिए। षड्यंत्र के द्वारा हो सकता है कि थोड़ा-बहुत व्यतिक्रम आ जाए, परन्तु यह स्तिथि देर तक नहीं ठहरने वाली है और न चलने वाली है। इसलिए निकट भविष्य में हिंदी भाषा की अस्मिता को नष्ट कर जिस अँग्रेजी भाषा को वरीयता दी गई है, उसे टूटना ही है। पुनः हिंदी की प्रतिष्ठा होगी और हिंदी की महत्ता बढ़ेगी। यह दैवी विधान है। अतः हमें अभी से हिंदी भाषा को बचाने, उसे समृद्ध करने एवं प्रचारित करने के किए कटिबद्ध हो जाना चाहिए।


Short Essay 1 :-  हिन्दी दिवस | Hindi Diwas


Hindi Diwas - Hindi


विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है हिन्दी। चीनी भाषा के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत और अन्य देशों में 60 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते,पढ़ते और लिखते हैं।

इतना ही नहीं फ़िजी,मॉरीशस,गुयाना,सूरीनाम जैसे दूसरे देशों की अधिकतर जनता हिन्दी बोलती है। भारत से सटे नेपाल की भी कुछ जनता हिन्दी बोलती है। आज हिन्दी राजभाषा,सम्पर्क भाषा,जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।

हिन्दी भाषा प्रेम,मिलन और सौहार्द की भाषा है। यह मुख्यरूप से आर्यों और पारसियों की देन है। हिन्दी के ज्यादातर शब्द संस्कृत,अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। हिन्दी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्रकृति से उदार ग्रहणशील,सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है हिन्दी।

यह विश्व की एक प्राचीन,समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राज्यभाषा भी है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रति जागरुकता पैदा करने और हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसे समारोह की भी शुरुआत की गई है। 10 जनवरी 1975 को नागपुर से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है। अब इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप मे भी मनाया जाने लगा है।


Medium Essay 2 :-  हिन्दी दिवस | Hindi Diwas


हिन्दी के ऐतिहासिक अवसर को याद करने के लिये प्रत्‍येक वर्ष 14 सितम्‍बर के दिन पूरे देश में हिन्‍दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश में हिन्दी भाषा की महत्ता को प्रदर्शित करने के लिये पूरे भारत में 14 सितम्‍बर को यह दिवस मनाया जायगा। तो आइये जानते हैं – क्या है हिंदी दिवस का महत्व?

क्यों मनाया जाता है हिन्दी दिवस ?

देश में हिन्दी भाषा की महत्ता को प्रदर्शित करने के लिये पूरे भारत में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा (देवनागरी) भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाई गई थी। हिंदी भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने का निर्णय भारत के संविधान द्वारा (जो 1950 में 26 जनवरी को प्रभाव में आया है) वैध किया गया था। भारतीय संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी भाषा को पहले भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अनुच्छेद 343 के तहत अपनाया गया था।

क्या है हिन्दी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस का इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने का कारण बहुत पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी  ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्त्वपूर्ण निर्णय के महत्त्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

हिन्दी के कमज़ोर होने का कारण

भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में बालकों को पूर्व प्राथमिक से ही अंग्रेज़ी माध्यम में प्रवेश दे दिया जाता है, बच्चे बचपन से ही अंग्रेजी भाषा का अध्यन स्कूलो में करते है, हिंदी का बोलबाला काम होते जा रहा है , अंग्रेज़ी भाषी विद्यालयों में तो किसी विद्यार्थी द्वारा हिन्दी बोलने पर अपमानजनक वाक्य लिख कर एक तख्ती लगा दी जाती है। अतः बच्चों को समझने के स्थान पर रटना होता है, जो कि अवैज्ञानिक है। ऐसे अधिकांश बच्चे उच्च शिक्षा में माध्यम बदलते हैं तथा भाषिक कमज़ोरी के कारण खुद को समुचित तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते और पिछड़ जाते हैं। इस मानसिकता में शिक्षित बच्चा माध्यमिक और उच्च्तर माध्यमिक में मजबूरी में हिन्दी यत्किंचित पढ़ता है, फिर विषयों का चुनाव कर लेने पर व्यावसायिक शिक्षा का दबाव हिन्दी छुड़वा ही देता है।

हिन्दी दिवस पर आयोजन

इस दिन विभिन्न शासकीय – अशासकीय कार्यालयों, शिक्षा संस्थाओं आदि में विविध गोष्ठियों, हिन्दी कविता, कहानी व्याख्यान, शब्दकोष प्रतियोगिता आदि से संबंदधित अलग कार्यक्रम, सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कहीं-कहीं ‘हिन्दी पखवाडा’ तथा ‘राष्ट्रभाषा सप्ताह’ इत्यादि भी मनाये जाते हैं। हिंदी दिवस पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हिन्दी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लिये लोगों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन पर पुरस्कृत किया जाता है।

हिन्दी दिवस पर सन्देश

हिन्दी हमारी मातृ भाषा है और हमें इसका आदर और सम्मान करना चाहिये। किसी भी देश की भाषा और संस्कृति किसी भी देश में लोगों को लोगों से जोङे रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। हर भारतीय को हिंदी भाषा को मूल्य देना चाहिए और देश में आर्थिक उन्नति का लाभ लेना चाहिये। यह एक दूसरे के साथ बातचीत करने के लिए बहुत आसान और सरल साधन प्रदान करती है। यह विविध भारत को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिये संपर्क भाषा के रूप में कही जाती है। हिंदी साहित्य का हमे सम्मान करना चाहिये और समय समय पर स्मरणोत्सव भी मनाना चाहिये। हमें हमारी राजभाषा पर गर्व करना चाहिये


Long Essay 3 :-  हिन्दी दिवस | Hindi Diwas


Hindi Hai Hum


प्रस्तावना

हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष '14 सितंबर' को मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी 'राष्ट्रभाषा' भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हम आपको बता दें कि हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।

इतिहास

भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाया जाएगा।

वर्तमान दृष्टि से हिन्दी का महत्व

धीरे-धीरे हिन्दी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिन्दुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए, साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा।

कब और क्यों मनाया जाता है

हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष '14 सितंबर' को मनाया जाता है। हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिन्दुस्तान को बांधती है। इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसी कर्तव्य हेतु हम 14 सितंबर के दिन को 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती।

पहले के समय में अंग्रेजी का ज्यादा चलन नहीं हुआ करता था, तब यही भाषा भारतवासियों या भारत से बाहर रह रहे हर वर्ग के लिए सम्माननीय होती थी। लेकिन बदलते युग के साथ अंग्रेजी ने भारत की जमीं पर अपने पांव गड़ा लिए हैं। जिस वजह से आज हमारी राष्ट्रभाषा को हमें एक दिन के नाम से मनाना पड़ रहा है। पहले जहां स्कूलों में अंग्रेजी का माध्यम ज्यादा नहीं होता था, आज उनकी मांग बढ़ने के कारण देश के बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हिन्दी में पिछड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें ठीक से हिन्दी लिखनी और बोलना भी नहीं आती है। भार‍त में रहकर हिन्दी को महत्व न देना भी हमारी बहुत बड़ी भूल है।

अंग्रेजी बाजार में पिछड़ती हिन्दी

आजकल अंग्रेजी बाजार के चलते दुनियाभर में हिन्दी जानने और बोलने वाले को बाजार में अनपढ़ या एक गंवार के रूप में देखा जाता है या यह कह सकते हैं कि हिन्दी बोलने वालों को लोग तुच्छ नजरिए से देखते हैं। यह कतई सही नहीं है। हम हमारे ही देश में अंग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं और हम ही अपनी हिन्दी भाषा को वह मान-सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, जो भारत और देश की भाषा के प्रति हर देशवासियों के नजर में होना चाहिए। हम या आप जब भी किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के बीच खड़े होकर गर्व से अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग में आपकी छवि एक गंवार की बनती है। घर पर बच्चा अतिथियों को अंग्रेजी में कविता आदि सुना दे तो माता-पिता गर्व महसूस करने लगते हैं। इन्हीं कारणों से लोग हिन्दी बोलने से घबराते हैं।

उपसंहार

आज हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाते हैं। इन स्कूलों में विदेशी भाषाओं पर तो बहुत ध्यान दिया जाता है लेकिन हिन्दी की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता। लोगों को लगता है कि रोजगार के लिए इसमें कोई खास मौके नहीं मिलते। हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ है गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए एक प्रयास। कोई भी व्यक्ति अगर हिन्दी के अलावा अन्य भाषा में पारंगत है तो उसे दुनिया में ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ने की बुलंदियां नजर आने लगती हैं चाहे वह कोई भी विदेशी भाषा हो, फ्रेंच या जर्मन या अन्य।


Interesting Facts of Hindi



  • विश्व में हिंदी सबसे ज्यादा बोले जाने के मामले में चौथे स्थान पर है |
  • भारत समेत विभिन्न देशो में करीब 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते ,लिखते और पढ़ते है |
  • फिजी ,मारीशस ,गुयाना ,सूरीनाम आदि देशो में अधिकतर लोग हिंदी बोलते है |
  • विश्व में करीब 130 विश्वविद्यालयो में हिंदी पढाई जाती है चीनी भाषा के बाद यह दुसरी भाषा है जो इतनी बड़ी संख्या में बोली जाती है |

Hindi Diwas/ Day Quotes :-


  • “हिन्दी हम अपनाएंगे.  राष्ट्र की शान बढ़ाएंगे!”
  • “जन-जन  की हिंदी प्यारी भाषा है , पुरे भारत की ये आशा है! इसके बिना जीवन थम जाये , ये तो जीवन की परिभाषा है!!
  •  “हिंदी का सम्मान, देश का सम्मान है हमारी स्वतंत्रता कहाँ है, राष्ट्रभाषा जहाँ है हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!”
  • “हिन्दुस्तान की है शान हिंदी  , हर हिन्दुस्तानी  की है पहचान हिंदी! एकता  की अनुपम परम्परा है हिंदी,  हर दिल का अरमान है हिंदी!!”
  • “भारत माँ के भाल पर सजी स्वर्णिम बिंदी हूँ मैं भारत की बेटी आपकी अपनी हिंदी हूँ
  • “जब भारत करेगा हिन्दी का सम्मान, तभी तो आगे बढ़ेगा हिन्दुस्तान!”
  • “करो हिन्दी का मान, तभी बढ़ेंगी हमारे हिन्दुस्तान की शान।”
  • “हमारी आन है हिन्दी, हमारी शान है हिन्दी,
  • फलक पर विश्व के देखों मेरी पहचान है हिन्दी।”
  • “हर भारतीय की शक्ति है हिन्दी, एक सहज अभिव्यक्ति है हिन्दी।”
  • “अपनी राष्ट्रीय भाषा को नीचा मत होने दो, यह हमारा गौरव है।”
  • “हिंदी भाषा है अति आसान , समझने वाले सबसे ज्यादा है इंसान ||”
  • “एकता की जान है,हिंदी देश की शान है!!”
  • "हिंदी की कहानी, हिंदी में है सुनानी!”


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