{{ आदर्श विद्यार्थी पर निबंध }} Essay on adarsh vidyarthi in hindi | Adarsh Vidyarthi par Nibandh In Hindi | Ideal Student Essay In Hindi

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आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay On Adarsh Vidyarthi In Hindi | Adarsh Vidyarthi Par Nibandh In Hindi  | Ideal Student Essay In Hindi


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Short Essay 1 :-  आदर्श विद्यार्थी  |  Adarsh Vidyarthi | Ideal Student



आदर्श विद्यार्थी वह है जो ज्ञान या विद्या की प्राप्ति को जीवन का पहला आदर्श मानता है। जिसे विद्या की चाह नहीं वह आदर्श विद्यार्थी नहीं हो सकता। यह विद्या ही है जो मनुष्य को नम्र, सहनशील और गुणवान बनाती है। विद्या की प्राप्ति से ही विद्यार्थी आगे चलकर योग्य नागरिक बन पाता है।

आदर्श विद्यार्थी को अच्छी पुस्तकों से प्रेम होता है। वह पुस्तक में बताई गई बातों को ध्यान में रखता है और अपने जीवन में उतार लेता है। वह अच्छे गुणों को अपनाता है और बुराइयों से दूर रहता है। उसके मित्र भी अच्‍छे सद्‍गुणों से युक्त होते हैं।

वह अपने गुरुजनों का सम्मान करता है। आदर्श विद्यार्थी अपने चरित्र को ऊंचा बनाने का प्रयास करता है। वह शिक्षकों तथा अभिभावकों की उचित सलाह को सुनकर उस पर अमल करता है।

आदर्श विद्यार्थी देश के भविष्य में मददगार साबित होते हैं। वे ही बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षक, पत्रकार, आईएएस, आईपीएस, वकील और फौज में उच्च अधिकारी आदि बनते हैं। वे देश की सेवा करते हैं और अपने देश व परिवार का नाम ऊंचा करते हैं। यदि किसी व्यक्ति का विद्यार्थी जीवन आदर्श रहा हो तो उसे आगे चलकर आदर्श नागरिक बनने में काफी मुश्किल हो सकती है।

आदर्श विद्यार्थी को सीधा और सच्चा होना चाहिए। उसे आलस्य नहीं करना चाहिए। परिश्रमी और लगनशील होना चाहिए। पढ़ाई के अलावा खेलकूद व अन्य गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए। उसे विद्यालय में होने वाली सभी तरह की गतिविधियों में भाग लेकर अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहिए। एक आदर्श विद्यार्थी अपने लक्ष्य को हमेशा ध्यान में रखता है।

Medium Essay 2 :-  आदर्श विद्यार्थी  |  Adarsh Vidyarthi | Ideal Student


विद्यार्थी जीवन भावी जीवन की आधारशिला है । आधारशिला यदि दृढ़ है तो उस पर बना हुआ भवन भी टिकाऊ और स्थायी होता है । इसी प्रकार, यदि विद्यार्थी जीवन परिश्रम, अनुशासन, संयम और नियमन में व्यतीत हुआ है तो निश्चय ही उसका भावी जीवन सुखद, सुंदर और परिवार, समाज तथा देश के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा ।

वही अपने देश का आदर्श नागरिक बन सकेगा और अपने सबल कंधों पर अपने देश का शासन-भार उठा सकेगा । भारत-कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू ने एक बार कहा था- “विद्यार्थी जीवन में बच्चों का हृदय कच्चे घड़े के समान होता है । उस पर इस जीवन में जो प्रभाव पड़ जाते हैं, वे जीवन-पर्यंत बने रहते हैं ।” यही वह समय है, जब विद्यार्थी अपने कोमल मन और मस्तिष्क को अंकुरित अवस्था में होने के कारण किसी भी दिशा में मोड़ सकता है ।

विद्यार्थी राष्ट्र के कर्णधार होते हैं । उन्हीं पर देश की उन्नति और अवनति आधारित रहती है । आज के विद्यार्थियों में से कल के गांधी, जवाहर और पटेल निकलते हैं; परंतु इस कथन की सत्यता उसी दशा में सिद्ध हो सकती है जब शिक्षा में जीवन और चरित्र की उन्नति पर बल दिया जाए ।

वर्तमान शिक्षा-पद्धति जीविका की शिक्षा देती है । विद्यार्थी पढ़-लिखकर कमाने-खाने योग्य हो जाए, यही शिक्षा का उद्‌देश्य रहता है और अभिभावक भी यही चाहते हैं । ऐसी स्थिति में जिस प्रकार के आदर्श नागरिकों को विद्यालयों से निकलना चाहिए, वैसे निकल नहीं पाते । इससे देश को आगे चलकर हानि उठानी पड़ती है ।

आदर्श विद्यार्थी अपने गुरुजनों की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करते, अपने पिता की आमदनी को मौज-मस्ती में नहीं उड़ाते, बल्कि कम-से-कम खर्च में अपने जीवन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं । इससे उनके जीवन में मितव्ययिता आती है ।

समय पर शयन, समय पर उठना, समय पर अध्ययन करना, समय पर व्यायाम करना, समय पर भोजन करना, विद्वानों की संगति में बैठना, दूषित विचारों और कुसंगति से दूर रहना आदि ही आदर्श विद्यार्थी के प्रमुख लक्षण हैं ।


Long Essay 3 :-  आदर्श विद्यार्थी  |  Adarsh Vidyarthi | Ideal Student



विद्‌यार्थी जीवन को मनुष्य के जीवन की आधारशिला कहा जाता है । इस समय वह जिन गुणों व अवगुणों को अपनाता है वही आगे चलकर चरित्र का निर्माण करते हैं । अत: विद्‌यार्थी जीवन सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी वह है जो परिश्रम और लगन से अध्ययन करता है तथा सद्‌गुणों को अपनाकर स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माँ-बाप व विद्‌यालय का नाम ऊँचा करता है । वह अपने पीछे ऐसे उदाहरण छोड़ जाता है जो अन्य विद्‌यार्थियों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी सदैव पुस्तकों को ही अपना सबसे अच्छा मित्र समझता है । वह पूरी लगन और परिश्रम से उन पुस्तकों का अध्ययन करता है जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उपयोगी हैं । इन उपयोगी पुस्तकों में उसके विषय की पुस्तकों के अतिरिक्त वे पुस्तकें भी हो सकती हैं जिनमें सामान्य ज्ञान आधुनिक जगत की नवीनतम जानकारियाँ तथा अन्य उपयोगी बातें भो होती हैं ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी सदैव परिश्रम को ही पूरा महत्व देता है । वह परिश्रम को ही सफलता की कुंजी मानता है क्योंकि प्रसिद्‌ध उक्ति है:

”उद्‌यमेन ही सिद्‌धयंति कार्याणि न मनोरथे,
न हि सुप्तस्य सिहंस्य प्रविशंति मुखे मृगा: ।”

आदर्श विद्‌यार्थी अपने अध्यापक अथवा गुरुजनों का पूर्ण आदर करता है । वह उनके हर आदेश का पालन करता है । अध्यापक उसे जो भी पढ़ने अथव याद करने के लिए कहते हैं वह उसे ध्यानपूर्वक पढ़ता है ।

कक्षा में जब भी अध्यापक पढ़ाते हैं तब वह उसे ध्यानपूर्वक सुनता है । वह सदैव यह मानकर चलता है कि वह गुरु से ही संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है । गुरुजनों के अतिरिक्त वह अपने माता-पिता की इच्छाओं एवं निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है ।

किसी भी विद्‌यार्थी के लिए पुस्तक ज्ञान आवश्यक है परंतु मात्र पुस्तकों के अध्ययन से ही सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है । अत: एक आदर्श विद्‌यार्थी पढ़ाई के साथ खेल-कूद व अन्य कार्यकलापों को भी उतना ही महत्व देता है । खेल-कूद व व्यायाम आदि भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके बिना शरीर में सुचारू रूप से रक्त संचार संभव नहीं है । इसका सीधा संबंध मस्तिष्क के विकास से है ।

खेलकूद के अतिरिक्त अन्य सांस्कृतिक कार्यकलापों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने से उसमें एक नया उत्साह तथा नई विचारधारा विकसित होती है जो उसके चरित्र व व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी नैतिकता, सत्य व उच्च आदर्शों पर पूर्ण आस्था रखता है । वह प्रतिस्पर्धा को उचित मानता है परंतु परस्पर ईर्ष्या व द्‌वेष भाव से सदैव दूर रहता है । अपने से कमजोर छात्रों की सहायता में वह सदैव आगे रहता है तथा उन्हें भी परिश्रम व लगन से अध्ययन करने हेतु प्रेरित करता है ।

अपने सहपाठियों के प्रति बह सदैव दोस्ताना संबंध रखता है । इसके अतिरिक्त उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास होता है । वह अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को समझता है तथा अपनी कमियों के प्रति हीन भावना रखने के बजाय उन्हें दूर करने का प्रयास करता है ।

सारांशत: वह विद्‌यार्थी जो कुसंगति से अपने आपको दूर रखते हुए सद्‌गुणों को निरंतर अपनाने की चेष्टा करता है तथा गुरुजनों का पूर्ण आदर करते हुए भविष्य की ओर अग्रसर होता है वही एक आदर्श विद्‌यार्थी है । उसके वचन और कर्म, दूसरों के साथ उसका व्यवहार, उसकी वाणी हमेशा यथायोग्य होनी चाहिए ताकि जीवन की छोटी-छोटी उलझनें उसका रास्ता न रोक सकें ।

Long Essay 5 :-  आदर्श विद्यार्थी  |  Adarsh Vidyarthi | Ideal Student


विद्यालय, महाविद्यालय एंव विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को छात्र कहा जाता है | अध्ययन काल को छात्र जीवन का स्वर्णिम काल कहा जाता है | इसी काल पर उसका भविष्य निर्भर करता है | यदि इस दौरान छात्र ठीक से पढ़ाई पर ध्यान न दें, तो उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है | इसलिए जो छात्र अपने छात्र जीवन के समय का सदुपयोग भली-भांति करते हुए अपने भविष्य को संवारने में निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं, उन्हें ही ‘आदर्श छात्र’ की संज्ञा दी जाती है |

छात्र का उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है | शिक्षा जीवनभर चलने वाली एक प्रक्रिया है | इसके द्वारा एक व्यक्ति आत्म-निर्भर बनता है, एंव उसके चरित्र का निर्माण होता है | एक आदर्श छात्र वही होता है, जो शिक्षा के इन उद्देश्यों पर पूर्णत: खरा उतरता है | प्राचीन काल में शिक्षा के उद्देश्य चरित्र-निर्माण, व्यक्तित्व विकास, संस्कृति का संरक्षण, समाजिक कर्त्तव्यों का विकास इत्यादि थे | वर्तमान में भी शिक्षा के इन उद्देश्यों में परिवर्तन नहीं हुआ है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी शिक्षा के कई उद्देश्य वर्तमान संदर्भ में आवश्यक हैं | वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य देश का सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकीकरण करना भी है | शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना भी होता है | एक आदर्श छात्र वही होता है, जो शिक्षा के इन उद्देश्यों पर पूर्णत: खरा उतरता है |

इस तरह एक आदर्श छात्र ईमानदार होता है | वह अपनी पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देता है, अपने साथियों के साथ मिलकर रहता है एंव आवश्यकता पड़ने पर उनका सहयोग करता है | वह अपने माता-पिता एंव शिक्षकों का सम्मान करता है एंव उनकी सेवा करने के लिए भी तत्पर रहता है | उसकी दिनचर्या प्रातः जल्दी शुरू हो जाती है | सुबह तड़के ही नित्य-क्रिया से निवृत्त होकर वह हाथ-मुंह धोता है एवं उसके बाद कुछ समय तक शारीरिक व्यायाम एंव योग करता है | इसके बाद वह स्नान कर अपनी पढ़ाई शुरु कर देता है | नम्रता, अनुशासन, ईमानदारी, बड़ों के प्रति श्रद्धा और सम्मान, परिश्रम, समय का सदुपयोग इत्यादि एक आदर्श छात्र के गुण हैं | आदर्श छात्र अपने माता-पिता और गुरुजनों का स्नेहभाजन होता है | वह समाज में भी सबका स्नेह प्राप्त करता है |

आदर्श छात्र अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, खेलकूद एवं योग को भी अपने जीवन में स्थान देता है | खेल के समय हमेशा खेल-भावना का परिचय देते हुए, अपने साथियों को प्रोत्साहित करता रहता है | खेल के द्वारा वह अपनी एंव अपने साथियों की नेतृत्व क्षमता का विकास करता है तथा शिष्टाचार एंव अनुशासन का पाठ सीखता एंव सिखाता है | जो छात्र अपने प्रत्येक कार्य नियम एंव अनुशासन का पालन करते हुए संपन्न करते हैं, वे अपने अन्य साथियों से न केवल श्रेष्ठ माने जाते हैं बल्कि सभी के प्रिय भी बन जाते हैं | शिष्टाचार एंव अनुशासन के इन्हीं महत्त्वों को समझते हुए एक आदर्श छात्र शिष्ट होता है एंव अनुशासन का पालन करता है |

आदर्श छात्र अपने कर्तव्यों का पालन सही ढंग से करता है | वह पढ़ाई के अतिरिक्त खेल-कूद को भी समय देता है | वह विद्यालय में आयोजित प्रतियोगिताओं, जैसे वाद-विवाद प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, कविता-पाठ इत्यादि में पूरे उत्साह से भाग लेता है | विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न आयोजनों में वह स्वयंसेवक की भूमिका भी निभाता है | वह विद्यालय को अपना परिवार और विद्यालय में पढ़ने वाले अन्य छात्रों को अपना मित्र समझता है | वह अपने से छोटी कक्षा के छात्रों को स्नेह देता है एंव अपने से बड़ी कक्षाओं के छात्रों का सम्मान करता है | आवश्यकता पड़ने पर वह अपने वरिष्ठ छात्रों से सहयोग प्राप्त करने में संकोच नहीं करता है |

आदर्श छात्र की भाषा संयमपूर्ण एंव शिष्ट होती है | वह अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करता | वह हमेशा शिष्टाचार का ही पालन करता है | वह भूल कर भी अपने साथियों से नहीं झगड़ता |

विद्यार्थी को छात्र जीवन में सुख की प्राप्ति मुश्किल होती है | उसे दिन-रात परिश्रम करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी होती है | इसलिए संस्कृत में कहा गया है- “सुखार्थिन: कुतो विद्या, विद्यार्थिन: कुतो सुखम”, अर्थात “सुख चाहने वालों को विद्या की प्राप्ति एंव विद्या के अभिलाषी को सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती |” सुबह उठकर पढ़ाई करना, दिन भर विद्यालय में पढ़ाई करना, उसके बाद रात को सोने से पहले पढ़ाई करना, पढ़ाई की इन समयावधियों के बीच शारीरिक एंव मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से खेल-कूद एवं व्यायाम को भी दिनचर्या में शामिल करना, यह किसी भी व्यक्ति के लिए कष्टदायी हो सकता है | किन्तु जीवन में सफलता के दृष्टिकोण से यह अनिवार्य है | कुछ खोए बिना, कुछ पाना भी तो मुश्किल है | यदि सुख की कीमत पर विद्या की प्राप्ति होती है, तो क्या कम है ! क्योंकि विद्या तो अनमोल है | इस विद्या के परिणामस्वरुप व्यक्ति का भविष्य सुखमय हो जाता है एंव छात्र जीवन के कष्ट की भरपाई हो जाती है |

आदर्श छात्र अपने देश की एकता एंव अखंडता के महत्व को समझता है | वह सभी धर्मों का समान भाव से सम्मान करता है एंव किसी व्यक्ति में जाति, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं करता | आदर्श छात्र चूंकि अनुशासित जीवन व्यतीत करता है एंव शिष्टाचार का पालन करता है, इसलिए उसमें नेतृत्व की भावना का विकास स्वाभाविक रुप से हो जाता है |

नि:संदेह छात्र ही देश के भविष्य हैं | आदर्श छात्रों से ही देश के अच्छे भविष्य की आशा की जा सकती है | वे ही देश को सही नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि छात्र जीवन के दौरान शिष्टाचार, अनुशासन एवं ईमानदारी के गुण उनमें इस तरह कूट-कूट कर भरे जाते हैं | आदर्श छात्र ही भविष्य में देश की एकता एंव अखंडता को कायम रखकर, इसे बढ़ाने में सहयोगी हो सकते हैं | इस तरह आदर्श छात्र देश के भविष्य एंव समाज के लिए गौरव होते हैं |

Note :-   कृपया ध्यान दें: इस वेबसाइट का उद्देश्य विद्यार्थियों को नक़ल करना सिखाना नहीं है, बल्क़ि जिन विद्यार्थियों को हिन्दी निबंध लिखने में कठिनाई मेहसूस हो रही हो उनके लिए हैं | विद्यार्थियों से निवेदन है की यहाँ दिए गए निबंदो को पढ़े, समझें और अपने शब्दोँ में खुद से लिखने का प्रयास करें


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