{{ स्वदेश प्रेम पर निबंध }} Swadesh Prem Essay In Hindi | Swadesh Prem Par Nibandh in Hindi | Essay on love for your own country in Hindi

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 स्वदेश प्रेम पर निबंध |  Swadesh Prem Essay In Hindi | Swadesh Prem Par Nibandh in Hindi | Essay on love for your own country in Hindi


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Essay 1 :-  स्वदेश प्रेम |  Swadesh Prem |  love for your own country 



देश प्रेम का अर्थ है-देश से लगाव देश के प्रति अपनापन। व्यक्ति जिस देश में जन्म लेता है ,जिसमे रहता है उसके प्रति लगाव होना स्वाभाविक है। सच्चा देशप्रेमी अपने देश के लिए अपना तन-मन अर्पित कर देता है। देश प्रेम एक पवित्र भावना है ,निस्वार्थ प्रेम है, दीवानगी है। देश के लिए न्यौछावर हो जाने से बढ़कर और कोई गौरव नहीं है। भारत में शिवाजी ,महाराणा प्रताव, रानी लक्ष्मी बाई ,सरोजिनी नायडू ,तिलक ,गोखले , आज़ाद, सुभाष जैसे देशभक्त हुए हैं। देश प्रेम की भावना धन-दौलत ,समृद्धि ,सुख ,वैभव आदि में सबसे ऊपर है। भगवान् राम ने भी लंका विजय के बाद लक्ष्मण से कहा था-हे लक्ष्मण ये सोने की लंका भी मुझे स्वदेश से अच्छी नहीं लगती। अपनी धरती माँ और अपनी जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान होती है। देश प्रेम वह धागा है जिससे राष्ट्र के सभी मोती आपस में गुथे रहते हैं,सारे जान देश से जुड़े रहते हैं। बड़ी से बड़ी विप्पति भी देश प्रेम को देखकर निष्फल हो जाती है। प्राकृतिक विपदाएं बाढ़, तूफ़ान, महामारी, युद्ध या और कोई भी संकट भी देशप्रेम की ढाल पर झेला जा सकता है।

Essay 2 :-  स्वदेश प्रेम |  Swadesh Prem | love for your own country



जिस व्यक्ति में देश-प्रेम की भावना का अभाव है और जो अपने देश व अपनी जाति की उन्नति करना अपना धर्म नहीं समझता, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है । जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जिसकी धूल में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं, जिसका अन्न खाकर हम पले हैं, उसके प्रति हमारा प्रेम होना स्वाभाविक है ।

मातृभूमि तो माता के समान है । जिस प्रकार माता से हमारा अटूट प्रेम होता है उसी प्रकार अपने देश के प्रति हमारा प्रेम अटल होता है ।

देश-प्रेम ही देश की उन्नति का परम साधन है । जो मनुष्य अपना तन, मन, धन देश पर निछावर कर देता है, वही सच्चा देश-प्रेमी है । भामाशाह का नाम ऐसे देशभक्तों में सर्वोपरि है । उन्होंने चित्तौड़ की स्वतंत्रता के लिए महाराणा प्रताप को अपनी समस्त संपत्ति अर्पित कर दी थी ।

राष्ट्र के संकट के समय जो व्यक्ति चोर-बाजारी, रिश्वतखोरी या अन्य अनुचित साधनों द्वारा धन कमाते हैं, वे देशद्रोही हैं । ऐसे लोगों को कठोर सजा मिलनी

चाहिए । हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति अपने शारीरिक श्रम द्वारा और विद्वान् तथा साहित्यिक अपनी रचनाओं द्वारा राष्ट्रोत्थान में सहायता कर सकते हैं-

”तन-मन-धन प्राण चढ़ाएँगे, हम इसका मान बढ़ाएँगे । बहती अमृत की धारा है,  यह भारतवर्ष हमारा है ।”

राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ के रूप में अपनी समर्पण भावना प्रकट करते हुए लिखा है-


”चाह नहीं है सुरबाला के गहनों में मैं गूँथा जाऊँ । चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ । चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ । चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ । मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक । मातृभूमि हित शीश चढ़ाने जिस पथ जाते वीर अनेक ।”

भारत में ही नहीं, विदेशों में भी ऐसी अनेक महान् विभूतियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया । संयुक्त राज्य अमेरिका में अब्राहम लिंकन तथा जॉर्ज वाशिंगटन, ईरान में रजाशाह पहलवी, आयरलैंड में डी. वेलरा, तुकी में कमाल पाशा आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।

आज हमारे देश की स्थिति बड़ी चिंताजनक है । हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन ने अपनी गिद्ध-दृष्टि हमारे राष्ट्र की स्वतंत्रता और भूमि को हड़पने के लिए लगा रखी है । ऐसी स्थिति में हममें देश-प्रेम की भावना का होना नितांत आवश्यक है । बिना इसके हम देश की अखंडता को अक्षुण्ण कैसे बनाए रख सकते हैं ? हमें जयशंकर प्रसाद के ये शब्द सदैव याद रखने चाहिए :

”जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष ।  निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।”

Essay 3 :-  स्वदेश प्रेम |  Swadesh Prem | love for your own country





“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं |
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ||”



मैथिलीशरण गुप्त की इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि देश-प्रेम के अभाव में मनुष्य जीवित प्राणी नहीं बल्कि पत्थर के ही समान कहा जाएगा | हम जिस देश या समाज में जन्म लेते हैं, उसकी उन्नति में समुचित सहयोग देना हमारा परम कर्त्तव्य बनता है | स्वदेश के प्रति यही कर्त्तव्य-भावना इसके प्रति प्रेम अर्थात स्वदेश-प्रेम या देश-भक्ति का मूल स्रोत है |

कोई भी देश साधारण एवं निष्प्राण भूमि का केवल ऐसा टुकड़ा नहीं होता, जिसे मानचित्र द्वारा दर्शाया जाता है | देश का निर्माण उसकी सीमाओं से नहीं बल्कि उसमें रहने वाले लोगों एवं उनके सांस्कृतिक पहलुओं से होता है | लोग अपनी पृथक संस्कृतिक पहचान एंव अपने जीवन-मूल्यों को बनाए रखने के लिए ही अपने देश की सीमाओं से बंधकर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं | यही कारण है कि देश-प्रेम की भावना देश की उन्नति का परिचायक होती है |

स्वदेश-प्रेम यद्यपि मन की एक भावना है तथापि इसकी अभिव्यक्ति हमारे क्रिया-कलापों से हो जाती है | देश-प्रेम से ओत-प्रोत व्यक्ति सदा अपने देश के प्रति कर्त्तव्यों के पालन हेतु न केवल तत्पर रहता है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटता | सच्चा देशभक्त आवश्यकता पड़ने पर अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पित कर देता है |

स्वतन्त्रता पूर्व के हमारे देश का इतिहास देशभक्तों की वीरतापूर्ण गाथाओं से भरा है | देश की आजादी के लिए सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे युवा क्रांतिकारियों के बलिदानों को भला कौन भुला सकता है |

किसी भी देश के सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिक स्वदेश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हों | मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले लोगों से न केवल देश का विकास अवरुद्ध होता है, बल्कि इसकी आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है, क्योंकि ऐसे लोग पैसों के लिए अपना ईमान ही नहीं, देश बेचने से भी संकोच नहीं करते | कुछ स्वार्थी नेता भी चुनाव जीतने के लिए क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, इत्यादि को बढ़ावा देते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता एंव अखंडता की भावना को ठेस पहुंचती है तथा देश में वैमनस्य एवं अशांति के वातावरण का निर्माण हो जाता है | हमें ऐसे नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है, जो देश-प्रेम का ढोंग रचते हैं | वास्तव में उनका मकसद देश के हितों को चोट पहुंचाना होता है |

वास्तव में देश-प्रेम की भावना मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ भावना है | इसके सामने किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्व नहीं होता | यह एक ऐसा पवित्र व सात्विक भाव है, जो मनुष्य को निरंतर त्याग की प्रेरणा देता है | इसीलिए कहा गया है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं | मानव की हार्दिक अभिलाषा रहती है कि जिस देश में उसका जन्म हुआ, जहां के अन्न-जल से उसके शरीर का पोषण हुआ एंव जहां के लोगों ने उसे अपना प्रेम एंव सहयोग देकर उसके व्यक्तित्व को निखारा, उसके प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन वह सदा करता रहे | यही कारण है कि मनुष्य जहां रहता है, अनेक कठिनाइयों के बावजूद उसके प्रति उसका मोह कभी खत्म नहीं होता |

देश-प्रेम को किसी विशेष क्षेत्र एंव सीमा में नहीं बांधा जा सकता | हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो, वही देश-प्रेम की सीमा में आता है | अपने  प्रजातंत्रात्मक देश में, हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ईमानदार एंव देशभक्त जनप्रतिनिधि का चयन कर देश को जाति, संप्रदाय तथा प्रांतीयता की राजनीति से मुफ्त कर इसके विकास में सहयोग कर सकते हैं | जाति-प्रथा, दहेज-प्रथा, अंधविश्वास, छुआछूत इत्यादि कुरीतियां देश के विकास में बाधक हैं | हम इन्हें दूर करने में अपना योगदान कर देश-सेवा का फल प्राप्त कर सकते हैं | अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़कर हम अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं | हम समय पर टैक्स का भुगतान कर देश की प्रगति में सहायक हो सकते हैं | इस तरह, किसान, मजदूर, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, चिकित्सक, सैनिक और अन्य सभी पेशेवर लोगों के साथ-साथ देश के हर नागरिक द्वारा अपने कर्त्तव्यों का समुचित रुप से पालन करना ही सच्ची देशभक्ति है |

नागरिकों में देश-प्रेम का अभाव राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्र की आंतरिक शांति तथा सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है | यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे | इस प्रकार अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा एंव राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना तब ही संभव है जब हम देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करेंगे |

यह हमारा कर्त्तव्य है कि सब कुछ न्योछावर कर के भी हम देश के विकास में सहयोग दें, ताकि अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहा हमारा देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे | अंततः हम कह सकते हैं कि देश सर्वोपरि है, अतः इसके मान-सम्मान की रक्षा हर कीमत पर करना देशवासियों का परम कर्त्तव्य है |

 स्वदेश प्रेम | Swadesh Prem |  love for your own country Quotes in Hindi :-



देश-प्रेमी हमेशा अपने देश के लिए,
मरने की बात करते है…
पर कभी अपने देश के लिए,
मारने की बात नहीं करते…!!


देश के लिए प्यार है तो जताया करो,
किसी का इंजतार मत करो…
गर्व से बोलो ” जय हिन्द “
अभिमान से कहो भारतीय है हम…!!
मैं भारतीय हूँ और यह होना ही मेरे लिए पर्याप्त है!!


सो जायेगी लिपटकर तिरंगे के साथ अलमारी में!!
ये देश भक्ति है साहब,
कुछ तारीखो पर ही जगती है!!


देश भक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं! कह दो उन्हें…
सीने पर जो जख्म है,
सब फूलों के गुच्छे हैं!
हमें पागल ही रहने दो,
हम पागल ही अच्छे हैं!


Note :-   कृपया ध्यान दें: इस वेबसाइट का उद्देश्य विद्यार्थियों को नक़ल करना सिखाना नहीं है, बल्क़ि जिन विद्यार्थियों को हिन्दी निबंध लिखने में कठिनाई मेहसूस हो रही हो उनके लिए हैं | विद्यार्थियों से निवेदन है की यहाँ दिए गए निबंदो को पढ़े, समझें और अपने शब्दोँ में खुद से लिखने का प्रयास करें


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