स्वाधीनता दिवस (पन्द्रह अगस्त - 15 August ) पर निबंध | Essay on Independence day in Hindi | Swadhinta / Swatantra diwas par nibandh

स्वाधीनता दिवस (पन्द्रह अगस्त - 15 August ) पर निबंध | Essay on Independence day in Hindi | Swadhinta / Swatantra diwas par nibandh


स्वाधीनता दिवस (पन्द्रह अगस्त - 15 August )  | Independence day


हमारे राष्ट्रीय त्योहारों में स्वाधीनता दिवस पन्द्रह अगस्त का विशेष महत्व है। इसका महत्व सभी राष्ट्रीय त्योहारों मे इसलिए सर्वाधिक है कि इसी दिन हमें शताब्दियों की गुलामी की वेणी से मुक्ति मिली थी। इसी दिन हमने आजाद होकर अपने समाज और राष्ट्र को सम्भाला था।

स्वाधीनता दिवस या स्वतंत्रता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हम इसी दिन आजाद हुए थे। सन् 1947 को 15 अगस्त के दिन जिस अंग्रेजी राज्य का कभी भी सूरज नहीं डूबता था, उसी ने हमें हमारा देश सौंप दिया। हम क्यों और कैसे स्वतंत्र हुए, इसका एक सादा इतिहासा है। इस देश की आजादी के लिए बार बार देशभक्तों ने अपने प्राणों की बाजी लगाने से तनिक देर नहीं की।

स्वतंत्रता का पूर्ण श्रेय गाँधी जी को ही मिलता है। अहिंसा और शन्ति के शस्त्र से लड़ने वाले गाँधी ने अंग्रेजों को भारत भूमि छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने बिना रक्तपात के क्रान्ति ला दी। गाँधी जी के नेतृत्व में पं. जवाहरलाल नेहरू सरीखे भी इस क्रान्ति में कूद पड़े। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’ इस प्रकार जनता भी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आतुर हो उठी। गाँधी जी द्वारा चलाये गये आन्दोलनों से लोगों ने अंग्रेज सरकार का बहिष्कार कर दिया। उन्होंने सरकारी नौकरियां छोड़ दीं, जेल गए और मृत्यु को हँसते-हँसते गले लगा लिया। अन्त में खून रंग ले ही आया।

लेकिन दुर्भाग्य का वह दिन भी आ गया। भारत की दुर्भाग्यलीपि ने भारत के ललाट पर इसकी विभाजक रेखा खींच दी। यथाशीघ्र देश का विभाजन हो गया। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के नाम से भारत महान बंटकर दो भागों में विभाजित हो गया। धीरे धीरे देश का रूप रंग बदलता गया और आज स्थिति यह है कि अब भी भारत का पूर्णत्व रूप दिखाई नहीं पड़ता है। बलिदान, त्याग आदि को याद रखने के लिए प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। देश के प्रत्येक नगरों मे तिरंगे झण्डे को लहराया जाता है। अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया, स्वतंत्रता प्राप्ति पर पन्द्रह अगस्त को ऐतिहासिक स्थल लाल किले पर स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा झण्डा लहराया था। इसी भाँति लाल किले पर प्रत्येक वर्ष झण्डा फहराया जाता है। लाखों नर नारी इस उत्सव में भाग लेते हैं। प्रधानमंत्री झण्डा फहराने के बाद भाषण देते हैं और स्वतंत्रता को कायम रखने का सब मिलकर प्रण करते हैं। 

भारत की राजधानी दिल्ली में यह उत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन लाल किले के विशाल मैदान में बाल-वृद्ध नर नारी एकत्रित होते हैं। देश के बड़े बड़े नेता व राजनयिक अपने अपने स्थानों पर विराजमान रहते हैं। प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश के नाम अपना संदेश देते हैं। इसमें वे राष्ट्र की प्रगति पर प्रकाश डालते हैं और आगे के कार्यक्रम बताते हैं। यह भाषण रेडियो और दूरदर्शन द्वारा सारे देश में प्रसारित किया जाता है। जय हिन्द के नारे के साथ यह स्वतंत्रता दिवस समारोह समाप्त होता है। रात्रि में जगह जगह पर रोशनी होती है। सबसे अच्छी रोशनी संसद भवन और राष्ट्रपति-भवन पर की जाती है।

स्वाधीनता दिवस के शुभ अवसर पर दुकानों और राजमार्गों की शोभा बहुत बढ़ जाती है। जगह जगह सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिससे अत्यन्त प्रसन्नता का सुखद वातावरण फैल जाता है। सभी प्रकार से खुशियों की ही तरंगे उठती बढ़ती दिखाई देती हैं। स्वाधीनता दिवस के शुभ अवसर पर चारों ओर सब में एक विचित्र स्फूर्ति और चेतना का उदय हो जाता है। राष्ट्रीय विचारों वाले व्यक्ति इस दिन अपनी किसी वस्तु या संस्थान का उद्घाटन कराना बहुत सुखद और शुभदायक मानते हैं। विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन और संचालन देखने सुनने को मिलता है। प्रातः काल सभी विद्यालयों में राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है और जन गण मन अधिनायक जय है भारत भाग्य विधाता राष्ट्रीय गान गाया जाता है। कहीं कहीं इन बाल सभाओं में मिष्ठान वितरण भी किया जाता है। ग्रामीण अंचलों में भी इस राष्ट्रीय पर्व की रूप रेखा की झलक बहुत ही आकर्षक होती है। सभी प्रबुद्ध और जागरूक नागरिक इस पर्व को खूब उत्साह और उल्लास के साथ मनाते हैं। बच्चे तो इस दिन बहुत ही प्रसन्न होते हैं। वे इसे सचमुच में खाने पीने और खुशी मनाने का दिन समझते हैं।

हमें चाहिए कि इस पावन और अत्यन्त महत्वपूर्ण राष्ट्रीय त्योहार के शुभावसर पर अपने राष्ट्र के अमर शहीदों के प्रति हार्दिक श्रद्धा भावनाओं को प्रकट करते हुए उनकी नीतियों और सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारने का सत्संकल्प लेकर राष्ट्र निर्माण की दिशा में कदम उठाएं। इससे हमारे राष्ट्र की स्वाधीनता निरन्तर सुदृढ़ रूप में लौह-स्तम्भ-सी अडिग और शक्तिशाली बनी रहेगी।